वामपंथ भारत सहित पूरी दुनिया में बुरी तरह विफल रहा। मज़दूर और कृषक वर्ग के हक़ की लड़ाई के नाम पर दुनिया भर के वामपंथियों ने पुरे विश्व में खूनी क्रांति की। लेकिन यही वामपंथ, जिसकी वास्तविकता को दुनिया ने पहचाना, भारत ने भी समझा और इसे उखाड़ फेंका, आज भी पिछले दरवाजे से हमारे विचारों से खिलवाड़ कर रहा हैं। इसका मुख्य कारण हैं, ‘संस्थाएं’।
दरअसल संस्थाएं किसी भी विचारधारा के दुर्ग (किले/गढ़) होते हैं। वामपंथियों ने पूरे देश में बहुत बड़ी मात्रा में संस्थाएं खड़ी कर दी हैं। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, मीडिया जैसे लगभग हर क्षेत्र में। किसी भी राष्ट्र के विकास में उस राष्ट्र के युवा वर्ग का महत्वपूर्ण योगदान होता हैं, किन्तु यहाँ भारत की जड़ों से ही खिलवाड़ किया गया हैं। किसी भी राष्ट्र की ऐसी प्रमुख संस्था जिससे देश के नागरिकों की विचारधारा तय होती हैं, जिससे वह सही या गलत का आकलन करता हैं, वह हैं शिक्षा और मीडिया।
शिक्षा, एक ऐसा क्षेत्र जहाँ से देश की जड़ों का निर्माण होता हैं। जिसके द्वारा व्यक्ति अपने मूल से जुड़ता हैं। लेकिन आज भारत की शिक्षा नीति, पाठ्यक्रम पूरी तरह से वामपंथ के कब्जे में हैं।
भारत का हर युवा इसी पाठ्यक्रम को पढ़कर बड़ा होता हैं, इसके बाद जब वह किशोरावस्था में आता हैं तो भी उसे वही वामपंथी शिक्षा व्यवस्था मिलती हैं। विद्यार्थी एक ऐसा इतिहास पढ़ता हैं जिसमें अकबर और सिकंदर तो ‘महान’ हैं लेकिन बाजीराव पेशवा और सम्राट अशोक मात्र एक राजा। हरवीर सिंह गुलिया, हरि सिंह नालवा, हरिहर-बुक्का राय का तो नाम लेते ही आज की युवा पीढ़ी इधर-उधर देखने लगती हैं। आखिर क्यों इनको छुपा कर रखा गया हैं ? इनके पराक्रम के बारे में देश को क्यों नहीं बताया गया ? चरक, सुश्रुत, चाणक्य, नागार्जुन, आर्यभट्ट, रामानुजन, विवेकानंद, बुद्ध, महावीर के देश में गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा देकर इतिहास केवल मुग़ल बादशाहों और नेहरू गांधी परिवार तक ही सीमित कर दिया गया।
वहीं दूसरा क्षेत्र, मीडिया। एक ऐसा क्षेत्र जिससे समाज का हर वर्ग अपनी विचारधारा बनाता हैं, सामाजिक आकलन करता हैं। एक युवा जो सिर्फ गांधी-नेहरू को पढ़कर निकला हो, जिसे सिर्फ अकबर ‘महान’ के बारे में जानकारी हो वह जब इन वामपंथियों द्वारा चलित मीडिया संस्थानों की खबरों को देखता हैं तो इनकी कही बाते ‘ब्रम्ह वाक्य’ सी लगती हैं। मीडिया संस्थानों में बैठे यही वो लोग हैं जो शोभा सिंह और शादीलाल की सच्चाई कभी नहीं बताते, बल्कि उनका महिमामंडन करते हैं। इन्हें ‘आज़ादी की जंग’ लड़ने वाला बताया जाता हैं। आज मीडिया में राष्ट्रविरोधियों के पैरोकार बैठे हुए हैं। देशविरोधी तत्वों को ‘हीरो’ के रूप में दिखाया जाता हैं, आतंकियों के जनाजे की भीड़ इन्हें नहीं दिखती। मीडिया आज पूरी तरह वामपंथ के कब्जे में हैं। जिस तरह जंगलों में बैठे इनके वैचारिक मित्र बंदूकों से आतंक फैला रहे हैं ठीक उसी तरह ये स्वघोषित बुद्धिजीवी ‘बौद्धिक’ आतंकवाद को हमारे दिमाग में डालने की कोशिश में लगे हुये हैं।
कुछ वामपंथी संसद में गत्ते की तलवारें भांजते हैं, और कुछ क्रांतिकारी रूप में जंगलों में बंदूक चलाते हैं। इनसे लड़ाई सिर्फ संसद या जंगलों में नहीं बल्कि हर मोर्चे पर होनी चाहिए। लोगों तक सही जानकारी पहुँचाने के लिये अब हमें खुद अपनी संस्थाएं भी तैयार करनी चाहिए। स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी, अस्पताल और तो और वैकल्पिक मिडिया भी खड़ा करना चाहिए। अख़बार, मैगजीन, नाटक मंडलियां, संगीत, बैंड, पर्चे, कविता पाठ सबकुछ। बाकि इनका असली वर्णन तो करते ही रहेंगे, और इनकी वास्तविकता आप तक पहुँचाते रहेंगे।