भारत देश का मुकुट कहा जाने वाला कश्मीर बहुत समय से अलग-अलग समस्याओं से जूझ रहा है| कुछ समस्यायें पड़ोसी देश द्वारा पैदा की जा रही हैं और कुछ समस्यायें कश्मीर में अलगाववादी नेताओं द्वारा फैलाई जा रही हैं| ये वही नेता हैं जो भारतीय पासपोर्ट का तो उपयोग करते हैं परन्तु स्वयं को भारतीय कहलाने में शर्म महसूस करते हैं| अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान से चंदा लेकर नौजवान पत्थरबाजों को बढ़ावा देने वाले ये वही नेता हैं जिनके अपने बच्चे विदेशों में पढाई कर रहें हैं|
हालाँकि घाटी के अलगाववादी नेता, स्कूलों को किसी भी कीमत पर बंद कराने में लगे हुए हैं लेकिन इसी बीच भारी सुरक्षा के साथ अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी की पोती सकुशल अपनी परीक्षाएं दे रही थी| जहाँ कश्मीरी लोगों के घरों के चिरागों को अँधेरे में धकेल कर बुझाने की कोशिश की जा रही है, वहां अपने घरो के चिरागों को रौशन रखने के लिए स्कूलों में बेहद व्यवस्थित प्रकार से परीक्षाएं दिलवाई जा रही है| वैसे गिलानी साहब के बारे में एक और किस्सा प्रसिद्ध है वह यह कि कुछ समय पहले इन्होने भारतीय पासपोर्ट पर सरकार से अपनी बीमार बेटी को देखने जाने का अनुरोध किया था और वापस लौटते ही यह कहा था कि “मैं भारतीय नहीं हूँ”| इससे आप समझ ही सकते है कि इन अलगाववादियों के लिए “अपनों को बचाओ, दूसरों को सूली चढाओ” नारे के प्रति कितनी प्रतिबद्धता है|
अब जबकि बहुत से नौजवान और बच्चे इनकी भड़काऊ और दूसरों को आग में झोंक देने वाली राजनीति समझ चुके हैं| वे पढना चाहते है, स्कूल जाना चाहते हैं परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में दीपक जलाने की बजाय कश्मीर में स्कूलों को आग के हवाले किया जा रहा है| जिससे नयी पीढ़ी को आसानी से गुमराह कर उसके पीछे छिपे अपने मकसदों को पूरा किया जा सके| इन तरीकों से अलगाववादी, हिंसा की आग को जलाये रखने का षडयंत्र जारी रखना चाहते हैं|
एक रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर में 2 महीनो में लगभग 25 स्कूलों को आग के हवाले कर दिया गया है| यह आंकड़े दर्शाते हैं कि किस प्रकार से घाटी में जान-बूझकर बच्चों और नौजवानों को देश की मुख्यधारा से जुड़ने नहीं दिया जा रहा है| जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि स्कूलों में आग की घटनाएं झकझोरने वाली हैं और इस स्थिति पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, स्कूलों की इमारत जलाने वाले शिक्षा के दुश्मन हैं|
इससे अलग, कश्मीर के बहुत सारे छात्र/छात्राएं इन्टरनेट के माध्यम से कुछ चुनिन्दा स्कूलों द्वारा ऑनलाइन किये गए पाठ्यक्रमो से भी पढाई कर इस मुश्किल घड़ी में भी शिक्षा के क्षेत्र में रौशनी की किरण बने हुए हैं| परन्तु विषय यह है कि क्या वे इस वर्ष वार्षिक परीक्षा दे पायेंगे या अलगाववादी नेताओं द्वारा जलाई गयी इस आग में उनका भविष्य भी जलकर ख़ाक हो जाएगा|
सरकार सुरक्षा कारणों के तहत प्रतिबन्ध लगाये हुए है और असामाजिक तत्व किसी भी हाल में शैक्षणिक गतिविधियों को जारी रखने देने के मूड में नहीं है| यह प्रतिस्पर्धा कोई भी जीते परन्तु हथियार की तरह प्रयोग किया जा रहा नौजवानों का भविष्य प्रदेश और देश के विकास में निश्चित रूप से दुष्परिणाम लेकर आने वाला है| शायद समय आ गया है जब जम्मू कश्मीर को अलगाववाद, हुर्रियत और शिक्षा में से किसी एक को चुनना होगा और ये चुनाव उनके परिवार के लाडलों को एक झटके में नयी खुशहाल जिंदगी देगा या फिर एक दिन वे ग़मगीन गहराईयों में खो जायेंगे| बदलाव की बाँट जोह रहे कश्मीर को अपने आने वाले सुनहरे कल के लिए स्वयं खड़ा होना होगा और चलना होगा|