सदियों पहले भारत एक रूढ़िवादी देश हुआ करता था | यहाँ के लोग तर्क-तथ्य जैसी निरर्थक क्रियाओं में समय नष्ट कर देते थे | कुछ तो इतने मूर्ख थे कि बोलने से पहले समझते और समझने से पहले सोचते थे | वैज्ञानिक नाम मात्र के ही थे | एक आर्यभट्ट था जिसने पूरा जीवन शोध किया और ढूँढा भी तो शून्य ! आर्यभट्ट ही तो था आलिया भट्ट नहीं | असल शून्य तो राज ठाकरे और बहन जी ने लोकसभा 2014 में ढूँढा था | कवि भी ऐसे ही थे जो ज्ञान एवं प्रकृति की बातें करते थे | इसीलिए उन्हें कोई दीवाना नहीं कहता था और न ही पागल समझता था | चाणक्य भी उतने होशियार नहीं थे | सारा ज्ञान कूटनीति और राजनीति तक ही सीमित था | पाटलिपुत्र को OBC आरक्षित सीट घोषित कर चन्द्रगुप्त का जाति-प्रमाण पत्र धीरे से चिपका देते तो ये पटकी-पटका न करना पड़ता | कृष्णा यादव नमक युवक के पास लाखों गायें थी पर स्टार्ट-अप की समझ नहीं थी इसलिए सिर्फ दूध-मक्खन से ही संतोष कर लेते थे | गायें तब भी मरती थीं | फर्क बस इतना था कि पहले देखने वालों की आँखों से पानी निकलता था अब मुंह से !
धीरे-धीरे समय और हमारी नीयत दोनों बदली | जन्म हुआ मीडिया का | ज्ञान यूरेनियम से भी ज़्यादा रेडियो-एक्टिव होता है | यही कारण था कि हमारी कई पीढ़ियां तर्कशक्ति जैसी जन्मजात बीमारी से ग्रसित रहीं | फिर आया वर्ष 2002 | ज्ञान, तर्क,तथ्य, सदभाव, समझ जैसी लाइलाज बीमारी से छुटकारा दिलाने का बीड़ा उठाया कुछ मीडिया वालों ने | बहुतय आदर्शवादी थे वे लोग | गरीबी बेचीं पर कभी गरीब को बिकने नहीं दिया न ही उसकी ज़मीन को | सड़क, फैक्ट्री, स्कूल, कॉलेज, अस्तपताल वगैरह तो हवा में भी बन जाते हैं पर धान कहीं हवा में उगता है ? जाने किस गुरुकुल के थे ये लोग | शायद मदरसे के रहे होंगे | एक विद्या में सभी निपुण थे | पेड़ पर निबंध लिखने को कहा जाए तो सभी में ऐसा गज़ब का हुनर था कहीं से भी एक बकरी ढूंढ ला कर पेड़ से बाँध देते थे और चर्चा बस यही करते कि कैसे ये बकरी इस पेड़ की पत्तियों के लिए खतरा है |
विद्या का प्रयोग जरूरी था | क्रिकेट में सचिन, फिल्मों में खान और राजनीति की ख़बरों में सिर्फ मोदी का ही नाम बिकता था | खिलाड़ी-अभिनेता का खुद का कैरियर सुरक्षित नहीं होता तो इनका क्या खाक सुरक्षित रखते | फिर क्या था देश की हर छोटी-बड़ी और जरूरत से छोटी घटना बनी उनका पेड़ और मोदी जी बने बकरी | रस्सी लम्बी थीं | खेत किसी और का भी हो तब भी बकरी जबरन बाँध ही दी जाती थी पेड़ से |
धंधा चल निकला | बकरी से डरने वाले ज़्यादा थे | बकरी के नाम से डराने वाले और भी ज़्यादा थे | धीरे-धीरे ये बकरी बहुत जिम्मेदार हो गयी | हर पेड़ की जिम्मेदारी इसको ही मिलने लगी | बकरी तो बकरी थी कभी विरोध न कर पायी | हर माँ-बाप का सपना होता है की उनका बेटा जिम्मेदार बने | पर इतना जिम्मेदार हो जाएगा कि खुद जिम्मेदारी शर्मसार हो जाए ये किसी ने न सोचा होगा |
ऐसी ही तमाम घटनाओं के बीच दादरी की घटना भी मीडिया की नीचता का उदाहरण है | अफवाहों और आरोपों के सिलसिले में न जाने कहाँ से मोदी जी को ला घसीटा | कुछ का कहना था की मोदी अगर अपनी माँ के लिए रो सकते हैं तो अख़लाक़ की माँ के लिए क्यों नहीं | इसे आप तर्क कहते हैं ? मीडिया ये क्यों भूल रही कि मोदी भाजपा के नेता हैं हिन्दुओं के नहीं | न ही संघ और न ही बजरंग दल कोई भी नहीं है हिंदुत्व का ठेकेदार | फिर क्या कारण है कि हर हिन्दु-मुस्लिम घटना को मोदी से जोड़ दिया जाता है इस देश में ? यही नहीं देश के हर एक छोटे-बड़े चुनाव को मोदी लहर के पैमाने में देखा जाता है | भाजपा जीती तो स्थानीय कारण होते हैं और अगर हारी तो मोदी लहर थम गयी ! भला हो ओसामा ‘जी’ और हाफ़िज़ ‘साहब’ का जो अपने कामों की जिम्मेदारी खुद ले लेते हैं वरना उनकी भी जिम्मेदारी ये मीडिया मोदी को ही देती |यह इस देश की विडम्बना ही है कि मीडिया वाले अपने निजी स्वार्थ के लिए साम्प्रदायिकता की आग में घी डाल रहे | धर्म के नाम पर सियासती रोटी सेंकने वाले पहले से कम न थे | मीडिया वालों की दलाली ने रही-सही कसर पूरी कर दी |
प्रधानमंत्री ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की तो एक साल बाद ये मीडिया वाले गला फाड़-फाड़ चिल्ला रहे कि अभियान विफल रहा | हम अपना देश खुद नहीं साफ़ कर पाये और दोष उसको दे रहे जिसने कम से कम सफाई की बात तो की | जिनकी पार्टी का चुनावी निशान ही झाड़ू है, ऐसे पत्रकार रहे नेता आशुतोष भी प्रधान मंत्री के सफाई अभियान पर टिप्पणी करते नज़र आये | पत्रकारिता के सबसे निचले स्तर को प्राप्त करने के बाद भी जब चाह नहीं मिटी तब उन्होंने राजनीति में हाथ आजमाया है | इनके बारे में लिखना वक़्त और स्याही की बर्बादी है |हमारी नाकामी और बेशर्मी के लिए भी मोदी जिम्मेदार ?
ये बात तो धुर मोदी-विरोधी भी जानते हैं कि अगर मोदी तानाशाह होते तो जिस तरह से उनके विरुद्ध सुनियोजित तरीके से अभियान चलाया जाता रहा है वो कब का समाप्त हो चुका होता | मोदी को सोशल मीडिया पर अपनी आवाज़ मिलती रही और उन्होंने रास्ते में भौंकने वालों पर गौर नहीं किया | परन्तु अब देश की एकता और अखंडता में यही मीडिया सबसे बड़ी बाधक बन चुकी है | इनसे मुंह फेर लेने से खतरा टलेगा नहीं | जवाब देना ही होगा | फिर भी एक आखिरी चेतावनी देना आवश्यक है | अब बस भी करो मीडिया वालों | ” लोगों में गुस्सा बहुत है आज़माना बंद करिये “|
Agar hamara pura desh Gaumutra pena shuru kar de to adhi samasye to dur ho gayegi. Modiji anpne maan ki baat me kuch Gaumutra ke pahyede ke bare me batade to bahut logo ko pahyda hoga.
BJP has been the most divisive and communal party India has seen till date.
And why u say so? Back ur argument with some examples please? Or आप भी तर्क तथ्य जैसी चीजो को पीछे छोड़ आये?
The current BJP is very different from the one we saw during Atal Ji’s era.
So u say that BJP was not divisive that time even though there were people like L K Advani?
Sirji I have read many satire till date but this one is outstanding!!