“नहीं…..” अमीना चीत्कार कर उठी
“शोएब के अब्बू नहीं रहे, हाय अल्लाह…अब मैं कहाँ जाऊं” अमीना की चीख से मानो पूरा घर कंपकपा रहा था. कोने में खड़ा नन्हा शोएब भी सुबक रहा था, अभी सुबह ही तो अब्बू भले चंगे थे उनको अचानक हुआ क्या? उनकी वफादार साइकिल भी उन्हें न बचा सकी.
“मत रो अमीना बहन, हौंसला रख, खुदा को यही मंज़ूर था” पड़ोस की लुबना उसे दिलासा देते हुए बोली.
“कैसे हौंसला रखूं लुबना बहन, इनके अलावा हमारा और कौन था” अमीना बिलखते हुए बोली.
“पुलिस वाले आ गए हैं” रफीक ने कहा “किसी को बाहर आने को कह रहे हैं?”
“मैं आता हूँ” जवान बेटे की मौत का बोझ उठाये सत्तर बरस के फहीम खान ने कहा.
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“नहीं नहीं इंस्पेक्टर साहब, सब कुछ इतनी जल्दी हुआ की किसी को कुछ देखने सुनने कहने का मौका ही नहीं मिला. हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. साधारण खाने कमाने वाले लोग हैं साहब. कुछ लोग शायद पी के गाडी चला रहे थे, मेरा बेटा अनवर उन्ही के गाडी के नीचे आ गया.
“तो आपने नंबर नहीं देखा, फिर हम अज्ञात लोगों के खिलाफ ऍफ़आईआर दर्ज करेंगे. कुछ और पता चला तो आपको बताऊंगा. अपना ख्याल रखे फहीम जी” इंस्पेक्टर राकेश सिंह ने बुजुर्ग फहीम के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.
“जी अच्छा, खुदा हाफ़िज़” कुरते के कोने से अपने आंसू पोंछते फहीम ने कहा
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“काश की पैसा लोगों की कमी पूरी कर देता” अमीना फिर रोते हुए बोली. शोएब अपनी अम्मी से लिपट कर दहाड़े मार के रोने लगा. माँ बेटे को रोता देख लोग भी अपने आंसू नहीं रोक पाए. एक दुर्घटना ने आज कितनी जिंदगियां बदल के रख दी.
“मीडियावाले आ गए हैं” रफीक ने कहा “किसी को बाहर आने को कह रहे हैं?”
“अब ये मीडियावाले क्या करने आये हैं?” गुस्से में फहीम ने कहा. “क्या हम अपने बेटे की मौत का ग़म भी नहीं मना सकते, उनको जाने को कहो”
पांच मिनट बाद
“वो बस थोड़ी देर के लिए बुला रहे हैं, बोल रहे हैं सबका फायदा होगा”
“नामुराद साले…ठीक है मैं आता हूँ मिल के” फहीम पैर पटकते हुए बाहर चले गए
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“आपका ही नाम फहीम है?” मीडिया वाले ने माइक लगभग फहीम के मुह में कोंचते हुए कहा
“जी हाँ, बताइए” फहीम ने कहा
“आपका ही लड़का अनवर आज सुबह एक्सीडेंट में मारा गया” मीडिया वाले ने बेअदबी से पुछा
“हाँ वो मनहूस मैं ही हूँ, मेरा ही बेटा आज सुबह एक्सीडेंट में मारा गया” फहीम ने रुंधे गले से जवाब दिया
“क्या आपको पूरा भरोसा है की अनवर एटीएम की लाइन में नहीं मरा?” मीडिया वाले ने फिर तपाक से पुछा
“एटीएम की लाइन में? नहीं नहीं? वो तो बाजार से घर लौट रहा था”
“तो क्या अनवर बैंक की लाइन में मरा?”
“क्या बात करते हो मियाँ, मैंने कहा तो वो बाज़ार से लौट रहा था”
“बाज़ार में सामान खरीदने गया था?”
“बाज़ार और किस लिए जाते हैं?”
“अच्छा, तो फिर सामान खरीदने के लिए पैसे कहाँ से आये?”
“कहाँ से आये मतलब? हमारे पास थे? पुराने नोट तो हमने पहले ही बदलवा लिए थे, नए अभी कल ही लेकर आया था अनवर”
“कल लाइन में लगा था अनवर?”
“जी हाँ”
“तो हो सकता है थक गया हो”
“हो सकता है”
“तो शायद कल वाली थकावट के कारण आज गिर के मर गया हो?”
“क्या बात करते हो मियाँ? ये एक्सीडेंट था”
“अच्छा तो जिन्होंने गाडी चढ़ा दी, वो कौन थे”
“उन्हें मैं नहीं जानता, पता नहीं कौन थे वो क़ातिल जो हमारी हंसती खेलती ज़िन्दगी में आग लगा के चले गए?”
“तेज़ चला रहे थे गाडी?”
“जी हाँ”
“पक्का हड़बड़ी में रहे होंगे?”
“हो सकता है”
“अच्छा शुक्रिया”, ये कहकर मीडिया वालो ने विदा लिया. फहीम मियाँ वापस कमरे में आ गए. अन्दर अमीना अभी तक सुबक रही थी, शोएब रो रोकर सो चूका था. रफीक खिड़की के बाहर शून्य भाव से देख रहा था.
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कुछ देर बाद एक प्रमुख अखबार के ऑन लाइन संस्करण में एक नया लेख छपा
“मोदी सरकार का नया तोहफा: एटीएम जाने की हड़बड़ी में कुचला एक अभागे इंसान को”
ये सटायर अर्थात व्यंग है, इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं, और अगर है तो महज संयोगवश है