उत्तर प्रदेश के राजनैतिक समीकरण पिछले एक दशक में कुछ इस प्रकार के फेरबदलों से गुज़रे हैं, की जहाँ एक तरफ कॉंग्रेस और भारतीय जनता पार्टी बहुमत मे आने की भरपूर कोशिशों के बावजूद काफ़ी हद तक हाशिए पर धकेली गई हैं; वहीं मतदाताओं ने कब सपा और कब बसपा का दामन थामा, ये मामला खुद कई हुक्मरानों के सर के ऊपर से होकर गुजर गया !
एक तरफ सपा युवा अखिलेश यादव के नेतृत्व, अमर सिंह की वापसी और आज़म ख़ान के प्रादेशिक राजनीति में बेतरतीब ढंग से बढ़े हुए कद से इस पेचीदा समीकरण में बढ़त पे है; वहीं हाल में हुए आंतरिक मतभेदों और गुटबाजी से आहत भी!
पर जो कयास हर पार्टी हुक्मरान लगा रहा है, वो है मुस्लिम मतदाताओं और उनके रुझान का ! मुसलमान मतदाताओं की सत्ता के समीकरण में भूमिका का ज्ञान हर पार्टी प्रमुख और रणनीतिज्ञ को भलीभाँति है ! गौरतलब रहा है की मुस्लिम मतदाताओं के रुझान को ना सिर्फ़ हर चुनाव में एक महत्वपूर्ण नज़रिए से देखा गया है, बल्कि इस समुदाय विशेष की सत्ता मे भागीदारी भी ख़ासी रही है !
इस जटिल समीकरण को समझने के लिए कुछ आँकड़े समझने आवश्यक हैं जो 2007 और 2012 में हुए चुनावों मे मुस्लिम मतों की महत्ता को दर्शाते हैं !
जब 2007 में मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने 206 सीटो के साथ सत्ता अपने नाम की थी, उसमे से एक बहुत बड़ा योगदान उन 30 सीटो का भी था जिनपर मुसलमान समुदाय के उम्मीदवारों ने बसपा का परचम लहराया था ! तब मुलायम सिंह और आज़म ख़ान की सपा सिर्फ़ 97 सीटो पर ही जीत दर्ज कर पाई थी, जिसमें से 19 मुस्लिम उम्मीदवारों के हिस्से आई थीं ! समस्त 403 सीटो (बाई पोल हटाकर) में से 55 सीटो पर मुस्लिम उम्मीदवार सफल हुए थे जो लगभग 14% होकर, समुदाय विशेष के लिए एक बड़ा हिस्सा माना जा सकता है !
इसके उलट जब 2012 में सपा ने प्रदेश की राजनीति मे जीत दर्ज की, तब उसकी कुल 224 सीटो में से 43 पर मुस्लिम उम्मीदवारों ने ही जीत दर्ज की ! बसपा इस बार सिर्फ़ 80 सीटो, जिसमें से 15 ही मुस्लिम उम्मीदवारों के नाम आईं, के साथ सत्ता के समीकरण से बाहर थी ! पर इस बार सत्ता में मुस्लिम समुदाय का हिस्सा 14% से बढ़कर 19% तक पहुच चुका था (कुल 403 सीटो पर 69 सफल उम्मीदवार) !
दोनों ही बार, मुसलमान समुदाय ने अपनी एक अहम भूमिका हर पार्टी के हुक्मरानों को स्पष्ट रूप से समझा दी थी!
अनुमानित है की इस बार बसपा 100 सीटो पर मुसलमान उम्मीदवारों के साथ उतरेगी, वहीं सपा ने अपनी अभी तक जारी 142 उम्मेदवारों की लिस्ट में 21 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान मे उतार दिए हैं, इसलिए आशंका है की सपा 60 से 70 सीटो पर ही मुस्लिम उम्मीदवारों के साथ उतरेगी !
सपा के रुझान मे देखा जाए तो इस बार जनाब आज़म ख़ान का स्पष्ट रूप से ना सिर्फ़ सपा में कद बढ़ा है, (जो 2009 के बिल्कुल विपरीत है, जब उन्होने आंतरिक मतभेदों के चलतेअपने पद से इस्तीफ़ा सौंप दिया था), बल्कि सत्ता पे उनके इस प्रभाव से मुस्लिम समुदाय में भी उन्होने एक ऐसा दर्जा हासिल कर लिया है जिसके आस पास वर्तमान में कोई भी मुस्लिम नेता टिकता दिखाई नहीं देता !
बावजूद इसके प्रदेश की राजनीति ने मुस्लिम उम्मीदवारों की जो फेरबदल अगस्त माह में देखी, उससे स्पष्ट है की विरोधी पार्टियाँ भी पुरजोर कोशिश में हैं की मुसलमान समुदाय का आज़म ख़ान से मोहभंग कैसे किया जाए !
बसपा वैसे तो आज़म ख़ान जैसे मुस्लिम नेता के अभाव में शायद ही अपने 100 उम्मीदवारों के साथ समुदाय को रिझा सके, पर संख्या का खेल उसे कई सीटो पर बढ़त भी दिला सकता है, जहाँ मतदाताओं के लिए निर्णय लेना आसान होगा और शायद बसपा के लिए निर्णायक !