दिनांक 7 मई, स्थान-गया, रात का समय था, घड़ी की सुइयां आठ पे रुक गयी थीं, दिन के समय वाहनों और लोगों से पटी रहने वाली गया की सड़कों पे धीरे-धीरे सन्नाटा पसर रहा था। पांच दोस्त एक मारुती स्विफ्ट में किसी पार्टी से लौट रहे थे, कार के स्टीरियो से निकल रहा संगीत सन्नाटे को भंग कर रहा था, सभी लड़के हंसी-ठिठोली करते हुए बिना किसी हड़बड़ी के अपने-अपने घर की ओर बढ़ रहे थे।
सभी अपने में मग्न थे इसलिए इस बात पर उनका ध्यान तक नहीं गया की उन्होंने एक लैंड रोवर को ओवरटेक किया लेकिन अगले ही मिनट उन्हें एहसास हो गया की कोई गड़बड़ हो गयी, वही गाड़ी उनकी कार के बिलकुल बगल में आ गयी और उसकी खिड़की से एक युवक ने उन्हें रुकने को कहा, लड़को ने ऐसा करना उचित नहीं समझा और गाड़ी चलाते रहे लेकिन तभी उन्हें रुकना पड़ा, दूसरी गाड़ी में बैठे युवक ने एक हवाई फायर किया और स्विफ्ट की ड्राइविंग सीट पे बैठे नासिर हुसैन ने सहमकर गाड़ी रोक दी।
लैंड रोवर से गोली दागने वाला युवक धड़धड़ाते हुए उतरा और नासिर को बड़ी ही क्रूरता से पीटने लगा, युवक ने लगभग दहाड़ते हुए नासिर से कहा, ‘तुम हमको नहीं जानते, हम रॉकी यादव हैं, बिंदी यादव के बेटे’, बिंदी यादव इलाके का छठा हुआ गुंडा था, विधान पार्षद मनोरमा देवी का पति। नासिर समझ गया की वो और उसके साथी बड़े पचड़े में फसने वाले हैं और उसने किसी तरह से खुद को रॉकी के चंगुल से छुड़ाया और गाड़ी भगा दी लेकिन गुस्से में बिलबिलाए रॉकी ने गाड़ी की पिछली विंड स्क्रीन पे एक फायर कर दिया। लड़को ने झुककर बचने की कोशिश की मगर पिछली सीट पर बीच में बैठे लड़के आदित्य सचदेवा के माथे में गोली जा लगी, आदित्य के प्राण क्षणभर में ही उड़ गए।
इधर रॉकी अपने बाकी दो साथियों के साथ वहां से रफूचक्कर हो गया। अगली सुबह ये खबर जंगल में आग की तरह पुरे गया में फैल गयी थी, जोरदार हंगामा हुआ, राजनीतिक पार्टियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और आमजन भी आदित्य की हत्या से स्तब्ध थे, लोगों ने सोशल मीडिया को हथियार बनाते हुए सरकार और प्रशासन को आड़े हाथों लिया, एसएसपी गरिमा मालिक को अगुवाई में गया पुलिस भी हरकत में आ गयी, पहले तो रॉकी के परिवार पे उसका पता बताने के लिए दवाब बनाया गया मगर जब वे नहीं माने तो रॉकी के पिता बिंदी यादव को गिरफ्तार कर लिया गया, उसकी माँ मनोरमा देवी जोकि जेडीयू कोटे से विधान पार्षद थी, ने अपने बेटे को बचाने का भरसक प्रयास किया मगर मीडिया के बढ़ते दवाब को देखते हुए मनोरमा देवी को सस्पेंड कर दिया गया जिसके बाद बेहद ही नाटकीय ढंग से रॉकी यादव उर्फ राकेश रंजन ने आत्मसमर्पण कर दिया। तलाशी अभियान में घर में शराब मिलने के कारण मनोरमा देवी की भी गिरफ्तारी हो गयी। कुल मिलाकर रॉकी यादव का पूरा परिवार अब सलाखों के पीछे था।
अब पुलिस ने रॉकी यादव का इतिहास खंगालना शुरू किया तो कई चौकाने वाले खुलासे हुए, रॉकी अवैध हथियारों की तस्करी के मामले में पहले से ही आईबी के राडार पे था। रॉकी यादव पे दो मुकदमे दायर किये गए, पहला आदित्य सचदेवा की हत्या का और दूसरा उत्पादक अधिनियम के अंतर्गत घर में प्रतिबंधित शराब रखने का। मुकदमा चला तो धीरे-धीरे लोगों का ध्यान मामले से हटने लगा, फिर पहले मनोरमा देवी को बेल मिली, उसके बाद बिंदी यादव को और अब रॉकी यादव को भी बेल मिल गयी।
कहने वाले ये भी कहते हैं मामला ठंडा पड़ता देख रॉकी यादव को बेल दे दी गयी लेकिन आज डिजिटल क्रांति के युग में भला ऐसा संभव है कि कोई अपराधी इतनी आसानी से बच कर निकल जाए।
रॉकी यादव के मामले में भी यही हुआ, बेल तो मिल गयी लेकिन आदित्य के पिता मीडिया सपोर्ट के कारण बिहार सरकार पे दवाब बनाने में कामयाब हो गए और मजबूरन बिहार सरकार ने यह फैसला लिया है की वो रॉकी यादव की बेल के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेगी।
निःसन्देह बिहार सरकार का ये फैसला सहरानीय है परन्तु फिर भी ऐसा कर के सरकार सवालों से बच नहीं सकती। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या बिहार सरकार बिना अपनी फजीहत कराये फैसले के अगले दिन ही सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकती थी? इसका मतलब तो यही निकलता है की अगर ये मामला मीडिया में तूल नहीं पकड़ता तो बिहार सरकार इसे रफा-दफा करने के मूड में थी। दूसरा सवाल तो ये है कि क्या इतने कुख्यात अपराधी को, जो पहले से ही आईबी के राडार पे था, इतनी आसानी से बेल मिल सकती है, ऐसा क्यों प्रतीत होता है कि चाहे कितना भी अपराधी क्यों ना हो पटना हाई कोर्ट उसे बेल देती है, ऐसी क्या मज़बूरी है हाई कोर्ट की जो वो बिना नागरिकों की सुरक्षा की गारंटी लिए बेलगाम और दुर्दात अपराधियों को बेल दे देते हैं?
अब इस मामले में सरकार और न्यायालय के अलावा एक तीसरा पहलु और भी है, वो है सत्ताधारी दल और जैसा की हम सभी जानते हैं की बिहार में राजद और जदयू की महागठबंधन सरकार है, सरकार के मुखिया तो नीतीश कुमार हैं लेकिन राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव सरकार से बाहर ही रहकर अपनी मनमर्जी चलाने से नहीं चूकते। रॉकी यादव के मुद्दे पे राजद का पक्ष ये है कि उसे बेल देने का फैसला अदालत का है और इसपे इतनी हायतौबा मचाना ठीक नहीं है, राष्ट्रीय जनता दल, जिसे गुंडे-मवालियों की पार्टी भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, के तरफ से ऐसा बयान आना कोई आश्चर्यचकित करने वाली बात नहीं है लेकिन जदयू का रुख इसपे सख्त नजर आ रहा, जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने साफ़ शब्दों में कहा है कि आदित्य सचदेवा को इंसाफ दिलाने के लिए बिहार सरकार हर वाजिब कदम उठाने के लिए तैयार है।
दोनों दलों की इस तरह की बयानबाजी से मतभेद साफ़ झलकता है, पहले शाहबुद्दीन और अब रॉकी यादव, दोनों मामलों में इन दलों के बीच मतभेद साफ़ उजागर हुए हैं लेकिन अब देखने वाली बात ये होगी की ये लड़ाई कितनी लंबी खिंचती है। बरहाल बिहार सरकार के सुप्रीम कोर्ट जाने का इन्तजार है लेकिन कुछ अनसुलझे सवालों के जवाब बिहार की जनता ढूंढ रही और आज ना कल नीतीश कुमार को जवाब देना ही होगा। इन सब के बीच ये बात भी साफ़ हो गयी है कि बिहार की जनता सरकार पे नियंत्रण रखने की माद्दा रखती है और वो अपराध चाहे ना रुकवा पाए लेकिन अपराधी पे सख्त से सख्त करवाई सुनिश्चित जरूर करेगी।
http://www.aapnabihar.com/2016/10/aditya-sachdeva-murder-accused-on-bail/