प्रशांत किशोर, ये शख्स बिहार की राजनीति का एक जाना-माना चेहरा बन चूका है, प्रदेश का बच्चा-बच्चा इन्हें जानता है, पहचानता है। कोई बड़े नेता नहीं हैं ये, कोई समाज सुधारक भी नहीं हैं, नहीं-नहीं कोई अपराधी भी नहीं हैं, ये तो कुछ महीने पहले संपन्न हुए बिहार विधानसभा में नितीश कुमार के जीत के पीछे का चेहरा माने जाते हैं। प्रशांत किशोर को मास्टर स्ट्रेटेजिस्ट का दर्जा प्राप्त है, 2014 लोकसभा चुनाव में इन्होंने एनडीए के चुनाव प्रचार की कमान संभाली हुई थी, कुछ लोग तो ये भी दावा कर देते हैं कि बीजेपी की जीत के पीछे भी इनका ही हाथ था ना की नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता था।
प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा के दौरान महागठबंधन के प्रचार-अभियान की कमान संभाली और चुनाव में यह गठबंधन जीत भी गया, नितीश कुमार के साथ-साथ प्रशांत किशोर ने भी खूब वाह-वाही बटोरी, अब कायदे से ये होता की चुनाव खत्म होते ही प्रशांत वापस किसी प्रदेश में चुनाव प्रचार का काम देखने निकल पड़ते लेकिन जिस तरह से वो साये की तरह नितीश कुमार के साथ दिखाई पड़ रहे थे उससे ये अंदाज़ा लगाया जाने लगा की प्रशांत किशोर को मेहनत का फल मिलने वाला है और हुआ भी कुछ ऐसा ही, नितीश कुमार ने प्रशांत किशोर को अपना ‘एडवाइजर’ नियुक्त कर लिया, उन्हें केबिनेट रैंक दे दिया गया, जिसका मतलब यह हुआ की उन्हें वो सभी सुविधाएं प्राप्त हो गयी जो किसी मंत्री को मिलती है, यहाँ तक की उन्हें बिहार सरकार के कैबिनेट की आधिकारिक मीटिंग में भी शामिल होने का अधिकार भी प्राप्त हो गया था।
ऐसा साफ़ प्रतीत हो रहा था कि प्रशांत किशोर को कैबिनेट मंत्री के सभी पद और अधिकार देने में निश्चित ही संवैधानिक व्यवस्था की अवेलहना की गई थी।
अब हम एक लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं तो किसी भी सरकार को किसी भी प्रकार की मनमानी करने से रोकने हेतु हमारे पास पर्याप्त अधिकार हैं और उन्ही अधिकारों का प्रयोग करते हुए एक स्वयंसेवी संस्था नागरिक अधिकार मंच के अध्यक्ष शिव प्रकाश राय ने अधिवक्ता दीनू कुमार के माध्यम से पटना हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर दी गयी, सीधे-सीधे नितीश कुमार को नामजद करते हुए डाली गयी इस याचिका में ये कहा गया कि उन्होंने प्रशांत किशोर को खुश करने के लिए कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर अपने एडवाइजर के रूप में 21जनवरी 2016 को नियुक्त किया था लेकिन इसका नोटिफिकेशन गजट 22जनवरी को निकाला गया जोकि नियमतः सही नहीं है। याचिका में आगे यह भी कहा गया कि प्रशांत किशोर की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी तरह से त्रुटिपूर्ण है और ये जनता के पैसे की बर्बादी है। मुख्य न्यायधीश इकबाल अहमद अंसारी और न्यायधीश डा.रविरंजन की खंडपीठ ने 19अक्टूबर को इस याचिका पे संज्ञान लेते हुए बिहार सरकार से जवाब तलब किया है। हालांकि, अदालत को नितीश कुमार को सीधे तौर पे प्रतिवादी बनाने पे आपत्ति थी क्योंकि वे एक संवैधानिक पद पे आसीन हैं इसलिए याचिका में संशोधन करके उसे बिहार सरकार पे केंद्रित कर दिया गया।
पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार से 27अक्टूबर तक जवाब देने के लिए कहा है। अब देखना दिलचस्प होगा की बिहार सरकार अपनी सफाई में क्या जवाब देती है।
यहाँ आश्चर्य की बात ये भी है कि नितीश कुमार के सलाहकार प्रशांत किशोर लगभग पांच महीनों से बिहार में हैं ही नहीं, यानी की एक व्यक्ति जोकि बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री के स्तर का सलाहकार है वो बिहार में रहता ही नहीं है। अब ये बात तो कोई भी समझदार व्यक्ति भली-भांति समझ सकता है कि बिहार सरकार किस प्रकार बिहार की जनता की कमाई का दुरुपयोग कर रही है लेकिन आज के इस डिजिटल जमाने में जहाँ सूचनाओं तक लोगों की पहुँच काफी आसान हो गयी है ऐसे असंवेधानिक काम करके बच निकलना थोड़ी टेढ़ी खीर है। हाँ ये संभव है कि कोई व्यक्ति जातियों का धुर्वीकरण करके चुनाव जीत जाए लेकिन इसका यह मतलब तो बिल्कुल भी नहीं निकलता की वो अपनी मनमानी कर सकता है क्योंकि हमारे संविधान में ऐसी व्यवस्था है कि सरकार में बैठे लोग अपनी मनमानी नहीं चला सकते।
बरहाल, पटना हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सरकार को तलब तो कर लिया है लेकिन इसी के साथ कई और सवाल भी मानस-पटल पे उभरने लगे हैं, आखिर ऐसी कौन सी वजहें रही होंगी जिसके कारण नितीश कुमार ने प्रशांत किशोर को सभी नियमों को दरकिनार करते हुए अपना सलाहकार नियुक्त कर लिया?
क्या अपनी रणनीतियों से महागठबंधन को जीत दिलाने के लिए प्रशांत किशोर को पुरस्कार-स्वरुप यह पद दिया गया? या फिर कुछ और वजह थी? अगर हम मान भी लें कि यह महज एक पुरस्कार था तो फिर क्या ऐसा करना सही था? चलिये अगर सभी प्रक्रिया सही भी है तो फिर क्या प्रशांत किशोर को यूपी में कांग्रेस का चुनाव अभियान सँभालने की बजाय बिहार आकर मुख्यमंत्री के साथ काम नहीं करना चाहिए? क्या एक संवैधानिक पद पे होने के बावजूद भी वो रणनीतिकार का काम करके कानून को ठेंगा नहीं दिखा रहे हैं? खैर, सवाल बहुत सारे हैं नितीश कुमार से भी और प्रशांत किशोर से भी और बेहतर यही होगा की बिहार की जनता ये सभी सवाल अपनी सरकार से पूछे ताकि नितीश कुमार को भी पता चले की केवल शराबबंदी का ढोल पीटने से ही जानता खुश नहीं हो जाती, सही मायनों में जनता को खुश करने के लिए उसके द्वारा चुकाये गए टैक्स के पैसों का सदुपयोग करना पड़ता है दुरूपयोग नहीं और ये बात नितीश कुमार जितनी जल्दी समझ जाएँ उनके लिए उतना ही बेहतर रहेगा।
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