यूपी की राजनीति में आजकल बवाल मचा हुआ है, आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, एक-दूसरे को सामूहिक मंच से गालियां बकी जा रही हैं, बलात्कार जैसे मामलों पे संवेदनहीन टिप्पणियाँ हो रही हैं। सारा हो-हल्ला उस समय शुरू हुआ जब उत्तर प्रदेश भाजपा के तत्कालीन उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने मायावती की टिकटों का मोल भाव करने की प्रवित्ति की तुलना वेश्या से कर दी। बसपा कार्यकर्त्ता सड़क पर उतर आये और जो घिनोनी हरकत की उसका दुबारा से जिक्र करने की मुझे नहीं लगता की कोई जरूरत है, मैं जिक्र तो यहाँ लगाये गए एक और नारे का करना चाहूंगा जिसे सभ्य नारा भी कह सकते हैं परन्तु इसका भी संपूर्ण विश्लेषण होना जरुरी है। वह नारा था-
“महिला विरोधी भाजपा, हाय-हाय।”
बसपा कार्यकर्ताओं ने यह नारा भी लगाया था और इससे वह यह दर्शाना चाहते थे की भारतीय जनता पार्टी महिलाओं का सम्मान नहीं करती, उन्हें आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहती है। यह तो विडम्बना ही कहलायेगी की जिस पार्टी का प्रधानमंत्री महिला सम्मान के लिए प्रतिबद्ध है, उसके एक पूर्व-नेता के शब्दों को पूरी पार्टी का बना दिया गया। मायावती जी, आप शायद भूल गयीं की जो लांछन आपने बीजेपी पे लगाया वह बेबुनियाद है और यह बात आपसे बेहतर कोई नहीं जनता होगा क्यूंकि बीजेपी ने आपका सम्मान बचाने के लिए भी संघर्ष किया है। वैसे भी भाजपा को महिला-विरोधी बनाना ‘बाल की खाल’ निकालने वाली राजनीति का एक उदाहरण मात्र था मगर लगता है आप भी भाजपा के उपकारों को भूल गयीं। चलिये भूल गयीं तो कोई बात नहीं, ‘बाल की खाल’ निकालने में मैं भी माहिर हूँ और आज आपको फिर से “गेस्ट हाउस कांड” याद दिलवाता हूँ, सभी को विस्तार से पूरा घटनाक्रम सुनाऊंगा और साथ ही मैं समाजवादी पार्टी के एक काले कारनामे की याद ताज़ा करवाऊंगा।
“गेस्ट हाउस कांड” यूपी की राजनीति का एक कला अध्याय है और यह सत्ता पाने के लिए लोग क्या कुछ कर सकते हैं इसकी मिसाल है। चलिए जानते हैं “गेस्ट हाउस कांड” की कहानी-
दरअसल, 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में एक गठबंधन हुआ था सपा और बसपा के बीच, चुनाव में इस गठबंधन की जीत हुई और मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुखिया बने लेकिन आपसी मनमुटाव के चलते 2जून, 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा करते हुए समर्थन वापसी की घोषणा कर दी और मुलायम सिंह यादव की सरकार अल्पमत में आ गयी। सरकार बचाने के सारे समीकरण लगाये जाने लगे मगर बात नहीं बनी।
मायावती से नाराज सपा कार्यकर्त्ता अपनी पार्टी के कुछ सांसदों और विधायकों के नेतृत्व में लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुँच कर उसे चारो तरफ से घेर लिया। इसी गेस्ट हाउस में मायावती कमरा न.1 में ठहरी थीं, उनके साथ बसपा के विधायक और कार्यकर्त्ता भी थे।
समाजवादी गुंडों ने हो-हल्ला मचाते हुए और मायावती को गालियां देते हुए गेस्ट हाउस पे धावा बोल दिया, बसपा विधायकों ने मुख्य द्वार बंद तो कर दिया मगर समाजवादियों ने उसे तोड़ दिया। उसके बाद समाजवादी गुंडों का झुण्ड बसपा विधायकों, कार्यकर्ताओं और मायावती पे टूट पड़ा।
वहां उपस्थित ज्यादातर अधिकारीयों ने जिसमे राज्य अतिथि गृह के संचालक और सुरक्षाकर्मी भी शामिल थे, इस पागलपन को रोकने की कोई कोशिश नहीं की। उस समय वहां लखनऊ के तत्कालीन सीनियर सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस ओपी सिंह भी मौजूद थे मगर वो एक कोने में खड़े होकर ऐसे सिगरेट फूँक रहे थे जैसे कुछ हुआ ही न हो। प्रशासन की मिलीभगत का यह भी साक्ष्य था की गेस्ट हाउस की बिजली रहस्यमय ढंग से काट दी गई।
समाजवादी गुंडे लगभग पांच बसपा विधायकों को घसीटते हुए जबरदस्ती गाड़ियों में डालकर मुख्यमंत्री आवास ले गए, उन्हें वहां पर सपा को समर्थन देने वाले शपथ पत्र पे हस्ताक्षर करने को कहा गया, कुछ बसपा विधायक इतने डर गए की उन्होंने कोरे कागज पे ही दस्तखत कर दिये।
इधर गेस्ट हाउस में समाजवादियों ने मायावती पे हमला बोल दिया, उन्हें मारा-पीटा, उनके कपड़े फाड़ डाले और वो लोग मायावती पे पेट्रोल छिड़क कर उन्हें जिन्दा जलाने के फिराक में थे लेकिन तब तक मायावती पे हमले की खबर एक और जगह पहुँच चुकी थी, खबर पहुंची थी ब्रम्हदत द्विवेदी के पास, उस समय वे उत्तर प्रदेश भाजपा के बड़े नेताओं में से एक थे। वे बिना किसी बात की परवाह किये हुए राज्य अतिथि गृह पहुँच गए और सिर्फ लाठियों के दम पर कट्टा-राइफल से लैस समाजवादी गुंडों से भीड़ गए। ब्रम्हदत द्विवेदी एक स्वयंसेवक थे और उन्हें लाठी भांजना भी बखूबी आता था इसीलिए समाजवादी उनके सामने ज्यादा देर टिक नहीं पाये और उन्होंने उन सभी को वहां से मार-मार के भगा दिया और मायावती को बचा लिया। आपको यह सब कुछ फिल्मी भी लग सकती है मगर पूरी घटना पूर्णतः सत्य है और किसी भी तथ्य को बढ़ा-चढ़ा के नहीं पेश किया गया है।
मेरे ख्याल से यह घटना समूचे भारत की राजनीति को शर्मसार करने वाली थी और अगर इसे आज के परिपेक्ष में लेकर देखा जाए तो बहुतों के चेहरे बेनकाब होते हैं। यह घटना मायावती के ‘महिला-विरोधी भाजपा’ वाले बयान का मुंहतोड़ जवाब तो है ही मगर साथ में यह समाजवादियों के कुकर्मों की यादें भी ताजा कर देती है, जो पार्टी सत्ता-सुख के लिए किसी महिला पर हमला कर दे उसकी सरकार में महिला-सुरक्षा पे बस्ती करना बेमानी होगी ऐसा मेरा मानना है। इस घटना को याद करना इसलिए भी जरुरी था क्योंकि बहुत सारे युवा वोटरों को राजनीति के इस काले अध्याय के बारे में ज्ञात नहीं है और इसलिये उन्हें कभी-कभी सत्य पहचानने में कठिनाई होती है।
बसपा कार्यकर्ताओं ने सिर्फ दयाशंकर वाले मुद्दे पे ही मायावती की नाक नहीं कटवाई बल्कि ये तो उनका पुराना इतिहास रहा है। गेस्ट हाउस कांड के दिन तो वो अपने नेता को अकेला छोड़ भाग खड़े हुए थे और ये मैं नहीं कह रहा हूँ, स्वयं मायावती ने कई मौकों पर ऐसा कहा है। भाजपा के ब्रम्हदत द्विवेदी की बाद में सपाइयों द्वारा गोली मार कर हत्या कर दी गयी और उनके परिवार को आजतक समुचित इन्साफ नहीं मिला जबकि मायावती उन्हें अपना भाई मानती थीं और पांच वर्षों तक उनकी सरकार भी रही थी। अब अगर मैं समाजवादी पार्टी के बारे में यह कह दूँ कि कुछ गुंडे राजनीति में आ गए और अपनी पार्टी बना ली तो मेरे ख्याल से किसी को इसपर आपत्ति नहीं होगी।
खैर, किस्से-कहानियों का दौर तो चलता ही रहेगा, 2017 में चुनाव हैं, यूपी के नेतागण विकासवाद के मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश में लग गए हैं मगर अब गेंद जनता के पाले में है, फैसला जनता को करना है की जातिवाद बड़ा या विकासवाद। जिसे भी चुने, सोच-समझकर, जाँच-परखकर चुने मगर अपने वोट देने के अधिकार से पीछे न हटें बाकी इस चुनाव की हर खबर पे नजर बनाये रखें ताकि फैसला लेने में आसानी हो।