उत्तर प्रदेश में चुनाव अभियान का शंखनाद हो चूका है, छोटे-बड़े सभी दल सत्ता सुख के लिए हाथ-पावँ मारने में लगे हुए हैं। यूपी की लड़ाई में वैसे तो भाजपा, बसपा और सपा प्रमुख चेहरें हैं मगर इस बार कुछ और भी जाने पहचाने चेहरे चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने के लिए कूद पड़े हैं। इन चेहरों में सबसे बड़ा नाम बिहार के मुख्यमंत्री नाम बिहार श्री नितीश कुमार ऊर्फ ‘सुशासन बाबू’ का है, देखा जाये तो नितीश कुमार का यूपी चुनाव में रोल ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ वाला है पर फिर भी इनकी ‘सोशल इंजीनियरिंग’ वाली राजनीति को पूरी तरह से दरकिनार नहीं किया जा सकता। इसलिए आज मैंने नितीश कुमार की यूपी चुनाव की रणनीति समझने की कोशिश की और मुझे जो कुछ भी समझ में आया उसे इस लेख के माध्यम से आप सभी को बतलाने का प्रयास कर रहा हूं। जरा ध्यान दीजियेगा।
अगर नितीश जी के अभी तक के भाषणों पर गौर किया जाये तो आप पायेंगे की उनका ज्यादातर हमला बीजेपी पर होता है। एक बार तो वे यूपी की स्थिति के लिए भाजपा को सीधे तौर पे जिम्मेदार ठहरा चुके हैं जबकि हास्यपद तथ्य ये है की यूपी में सरकार समाजवादियों की है। लेकिन इससे पहले की आप इस बयान को मूर्खतापूर्ण समझ कर खारिज कर दें मैं आपको बतला दूं की यह मीडिया के नजर में बने रहने की नितीश कुमार की रणनीति का एक हिस्सा है। अगर मीडिया कवरेज ज्यादा मिलता है तो लोगों का ध्यान आकर्षित होना स्वाभाविक है।
वैसे भी नितीश कुमार की श्री अरविंद केजरीवाल जी से अच्छी जमती है और इसका दोस्ती का असर नितीश कुमार की चुनावी रणनीतियों में साफ देखा जा सकता है। इतना ही नहीं, भाजपा पे लगातार निशाना साधकर नितीश कुमार 2019 के लिए जमीन बनाने के फ़िराक में हैं और ऐसा करने का सबसे बेहतरीन स्थान उत्तर प्रदेश ही है क्यूंकि ये तो सभी जानते हैं की केंद्र में सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है। लेकिन ये तो सिक्के का महज एक ही पहलु है, कहीं ना कहीं नितीश कुमार किसी की बी-टीम का भी काम कर रहें हैं। आपने अंदाजा लगा ही लिया होगा कि मेरा इशारा ‘सपा और बसपा’ की ओर है।
जी हाँ! नितीश कुमार यूपी में ‘वोटकटवा’ का काम कर रहें हैं, यानी की किसी तरह वोट बैंकों की गोलबंदी करके भाजपा को सरकार बनाने से रोकने का काम। पहले मुझे इस बात पे तनिक संशय था की वे ये काम आखिर कर किसके लिए रहें हैं मगर कुछ दिन पहले स्वामी प्रसाद मौर्य का उनके साथ मंच साझा करने इस बात को बल देता है की ‘सुशासन बाबू’ सपा को ‘उत्तम प्रदेश’ में बनाये रखने के लिए हाथ-पावँ मार रहे हैं।
वैसे तो नितीश मुलायम से खुन्नस खाये हुए थे क्योकि मुलायम सिंह के कारण नितीश कुमार के राष्ट्रीय स्तरीय महागठबंधन के सपने को तगड़ा झटका लगा था मगर अब लगता है की नितीश कुमार अपना पुराना सपना साकार करने के लिए फूँक-फूँक के कदम रख रहें हैं, तभी तो वो काफी सोच समझ कर और बेहद ही नपे-तुले अंदाज में सपा के उपर बयानबाजी कर रहें हैं। जो आदमी अभी तक अपनी शराबबंदी के कशीदे पढ़ रहा था अचनाक से वो बहुजनों की बात करने लगा है, शायद शराबबंदी वाली बातों पे पुर्नविचार किया गया है वैसे भी उसका कोई खास असर नहीं पड़ता था।
वैसे मायावती को भी वो पूरी तरह से नही भूले हैं क्योंकि वो यूपी में उनकी पार्टी को एक मजबूत आधार दें सकती हैं मगर जिस तरह से लालू यादव ने ‘समधी जी’ से ना लड़ने की बात कह कर खुद को किनारे कर लिया है उससे यह भी लगता है की इनलोगों के बीच अंदर ही अंदर कोई संधि जरूर हुई है। मेरे ख्याल से अभी यही कहना बेहतर होगा की नितीश कुमार न सपा को नाराज करना चाहते हैं और ना ही बसपा को क्योंकि उन्हें आने वाले समय में दोनों का सहयोग चाहिये होगा।
खैर, अभी तक का घटनाक्रम अमित शाह के ‘वोटकटवा’ वाले बयान को सही साबित करता है। उम्मीद है की आगे भी कुछ दिलचस्प कहानियां सुनने को मिलेगी। चाहता तो नितीश जी पे सैकड़ो कटाक्ष कर सकता था लेकिन अभी मैं यूपी की बात कर रहा हूं बिहार की नहीं इसलिए यूपी की राजनीति के एक छोटे से नेता के बारे में मैं ज्यादा नहीं लिख सकता।
धन्यवाद