यह लगभग तय माना जा सकता है कि अगले साल से संसद के बजट सत्र में रेल बजट का कोई नमो–निशान ही ना रह जाए। जैसा की पिछले कई वर्षो से चली आ रही चर्चाओं पे गौर करें तो यह साफ समझ में आ जाता है की रेल बजट लोकलुभावन घोषणाओं का एक प्लेटफार्म बन चूका है। अगर रेल–बजट सही में सरकार द्वारा खत्म कर दिया जाता है तो इसके साथ ही रेल बजट में किराये–भाड़े में कमी या बढ़ोतरी और विशेष रियायतों की बड़ी–बड़ी घोषणाओं का दौर खत्म हो जायेगा। ऐसा हो जाने पर रेलवे का वित्तीय लेखा–जोखा अन्य मंत्रालयों की तरह देश के आम बजट में ही संसद के समक्ष रखा जायेगा।
पीएमओ को भेजी गयी सिफारिश :
अभी पिछले हफ्ते ही नीति आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार कर के रेल बजट की परम्परा को खत्म करने संबंधी सिफारिश प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी है, और पीएमओ द्वारा इस रिपोर्ट को रेलवे बोर्ड के विचार जानने हेतु भेजा जा चूका है। बोर्ड को इस पर अगले कुछ दिनों में टिप्पणी देने को कहा गया है। अगर बोर्ड की टिप्पणी इस विषय पर सकारात्मक रहती है तो इसके बाद रेल मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का संयुक्त दल इस रिपोर्ट की सिफारिशों को अमल में लाने के लिए उपयुक्त व्यवस्था करेंगे।
लोकलुभावन घोषणाओं के नुकसान :
रिपोर्ट में यह साफ–साफ कहा गया है कि रेल-बजट लोकलुभावन घोषणाएं करने के लिए एक राजनीतिक प्लेटफार्म बनकर रह गया है, जिससे भारतीय रेल पे काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
यदि रेल बजट को खत्म कर दिया जाता है तो सरकार में नौकरशाही और राजनीतिक प्रक्रिया में कमी आएगी, जिससे रेलवे को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
आम बजट का हिस्सा होगी रेल :
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है की संविधान में अलग से रेल-बजट का कोई प्रावधान नहीं है इसलिए इसे खत्म करने में कोई अड़चन नहीं आएगी। रेल बजट की जगह हर साल आम बजट में रेलवे के फाइनेंसियल परफॉरमेंस, प्रस्तावित राजस्व, एक्सपेंसेस और पूंजीगत कार्यों के लिए एक वार्षिक योजना पेश की जा सकती है, जैसा की फिलहाल अन्य विभागों के लिए होता आया है। यह रिपोर्ट नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय द्वारा तैयार की गयी है जो पहले भी रेलवे के कायापलट पर एक रिपोर्ट तैयार कर चुके हैं।
संसद में किराया घोषित करना जरुरी नहीं :
अब तक रेल बजट का इस्तेमाल किराये में बढ़ोतरी या कमी की घोषणा करने के लिए भी किया जाता रहा है मगर आपको यह जानकार अचरज होगा की ऐसा करना जरुरी नहीं है। रेल-बजट के दस प्रमुख भाग होते हैं जिसमें से सिर्फ दो को ही संसद से मंजूरी मिलना जरुरी होता है। ये दो भाग हैं– पिछले फाइनेंसियल इयर का प्रदर्शन और अगले इयर का प्रपोस्ड इनकम और एक्सपेंडिचर। इस तरह इन दोनों को आम बजट में शामिल करके रेल बजट को खत्म किया जा सकता है।
90 साल पुराना है बजट :
रेल बजट का 90 साल पुराने इतिहास रहा है, और इसे देखते हुए ये भी कहना अनुचित नहीं होगा की सरकार के इस फैसले का व्यापक स्तर पे विरोध भी हो सकता है। बताते चले की पहली बार रेल बजट पेश करने की सिफारिश अकवर्थ समिति द्वारा 1920-21 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को की गयी थी।