चीन का एनएसजी विरोध, मोदी का पलटवार

एनएसजी भारत चीन

 

हमारे देश में चाइनीज़ सामान काफी सस्ते दामों में गली, मुह्हलों और बाज़ारों में मिलता है, मतलब कि बहुत प्रसिद्ध है ये हमारे देश में। मगर आजकल वो देश जहां से ये सारा सामान आता है यानि चीन, हमारे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि उसके अड़ंगा लगा देने के कारण भारत को एनएसजी (न्यूक्लिअर सप्लायर्सग्रुप) की सदस्यता मिलते-मिलते रह गयी। इसलिए आजकल बहुत सारे लोग चीन को कोस रहे हैं, मगर मेरे हिसाब से चीन का यह विरोध ज्यादा दिन नहीं टिक पायेगा।

 

अब अगर आपके जेहन में ये सवाल उठता है कि आखिर ये संभव कैसे होगा, तो आपके सारे सवालों और शंकाओं को मैं इस विश्लेषण द्वारा दूर करने का प्रयास कर रहा हूँ (यहाँ मैंने यह मान लिया है कि आपको पूर्ण जानकारी है कि चीन आखिर भारत का विरोध कर क्यों रहा है)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की अमेरिका दौरे के बाद से यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि अब भारत एनएसजी का सदस्य बन जायेगा। ये उम्मीद इसलिए भी जगी है क्योंकि अब भारत को एमटीसीआर( मिसाइल तकनीक कण्ट्रोल रिजीम ) सदस्यता प्राप्त हो चुकी है। पश्चिम के देशों की, खासकर अमेरिका की शिकायत रही है कि भारत परमाणु अप्रसार और निरस्तीकरण की बात तो करता है परन्तु स्वयं इस आदर्श का निर्वाह नहीं करता। जिसके जवाब में भारत का यह तर्क रहा है कि वह एक संप्रभु राष्ट्र है और बदलती परिस्थितियों में अपनी नीति को बदलने के लिए पूर्णत रूप से स्वतंत्र है। इस बात से मैं पूर्ण सहमति रखता हूँ, अगर दुनिया की महाशक्तियों ने परमाणु अस्त्रों का इतना बड़ा जखीरा तैयार कर के रखा हुआ है तो वे भारत से यह अपेक्षा नहीं रख सकते कि वह परमाणु सम्पन्न और उपद्रवी पड़ोसियों से घिरा होने के बावजूद अपनी सुरक्षा से खिलवाड़ कर लेगा। 1974 से ही भारत उन प्रतिबंधों का सामना करता आ रहा है जो अमेरिका ने उसके खिलाफ लागु किए हुए थे, और इनके कारण भारत की टेक्नोलॉजी और इकनोमिक ग्रोथ थोड़ी स्लो पड़ गयी।

खैर, वक्त बदला और पिछले 10-15 वर्षों में अमेरिका के साथ संबंधों में काफी सुधार हुआ है। इसीलिए तो अमेरिका ने यह कहते हुए कि ‘दो परमाणु परीक्षणों ( 1974और 1998 ) के बाद भी भारत का आचरण काफी जिम्मेदार रहा है और उसने परमाणु अप्रसार नहीं होने दिया’ यूपीए के कार्यकाल में, साल 2008 में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग वाले करार पे हस्ताक्षर किये। ऐसा करने के पीछे एक कारण यह  भी था कि, भारत में व्यापार करने वाली अमेरिकी कंपनियों को भारत में काफी प्रॉफिट हो रहा था इस लिए उन्होंने अपनी सरकार पे यह दबाव बनाया की वह भारत को प्रतिबंधों से मुक्त करे।

2008 के बाद भी ऐसे अनेक देश थे जो भारत को परमाणु या मिसाइल तकनीक देने का विरोध कर रहे थे। इसमे चीन तो था ही, उसके साथ ऑस्ट्रेलिया और कनाडा भी थे। लेकिन मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ये हालात बदलने लगे और लगभग सभी देशों में ये भावना जागने लगी कि अगर उन्होंने भारत को परमाणु जमावड़े से बाहर रखा तो इसका नुकसान भारत को कम, उन्ही को ज्यादा होगा। इसका परिणाम ये हुआ कि लगभग सभी बड़े देश अब भारत के समर्थन में हैं।

अब हमारे यहाँ कुछ आलोचकों को ये लगता है कि सरकार ने एनएसजी के लिए बेकार में ही इज्जत दांव पे लगा दी। ऐसी सोच को नादानी ही समझिये क्योंकि इससे कहीं ज्यादा ऊर्जा और श्रम तो भारत सुरक्षा परिषद के लिए खर्च करता है। हो सकता है कि चीन आने वाले कुछ और वर्षों तक भारत का विरोध करता रहे लेकिन धीरे-धीरे वो अलग-थलग पड़ता जायेगा और कुछ समय बाद उसके वीटो का कोई मतलब नहीं रह जायेगा क्योंकि एनएसजी के बाकी मेंबर्स भारत को ‘डीफैक्टो मेंबर’ (कानूनन गलत मगर हर मामले में कार्यकारी ) मानकर उसके साथ कारोबार करने लग जायेंगे। आज भारत परमाणु ताकत है और 1970 वाली परमाणु अप्रसार संधि पाकिस्तान की परमाणु तस्करी के बाद निरर्थक हो चुकी है। हम सभी को ये बात नहीं भुलानी चाहिए कि एनएसजी और एमटीसीआर का करीबी रिश्ता है और भारत परमाणु और मिसाइल दोनों ही क्षेत्रों में अपनी क्षमता का खुला प्रदर्शन कर चुका है।

असल में एनएसजी को मुद्दा बनाकर भारत का कूटनीतिक तंत्र एक तीर से दो निशाने लगाने का काम कर रहा है। वो इंटरनेशनल मंच पे चीन के विरोध के बाद भी अपनी हस्ती बनाने का काम कर रहा है। जापान के साथ सामरिक साझेदारी हो या वियतनाम के साथ दक्षिण चीन सागर में तेल-गैस शोधअभियान, भारत ने पश्चिम एशिया में अपने सभी विकल्प खुले रखे हैं। बिना सैनिक मुठभेड़ का जोखिम लिए चीन को घेरने वाली इस स्ट्रेटेजी का अहम हिस्सा एनएसजी की सदस्यता की मांग को मुखर करना है।

तो इसी लिए निराश मत होइए, अभी समय लगेगा मगर चीन को साधने की नीति सफल जरूर होगी और अगर ऐसा हो जाता है तो वो दिन दूर नहीं जब भारत भी हर मोर्चे पे एक वैश्विक महाशक्ति बन कर उभरेगा। फिलहाल हमे एक अच्छा और सच्चा नागरिक होने कि जिम्मेवारी निभाते हुए अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में सरकार के उठाये गए कदमों में विश्वास रखना होगा।

http://www.bbc.com/hindi/india/2016/06/160626_china_india_nsg_sdp

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