अभी कुछ वर्ष पूर्व की ही बात है, भारत एक महान धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हुआ करता था. भारत सांप्रदायिक सौहार्द से परिपूर्ण था. मुसलमान हिन्दुओं के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चला करते थे, और हिन्दुओं के द्वार अपने मुस्लिम मित्रों के लिए सदैव खुले होते थे. मानवीय प्रेम का एक अद्भुत उदाहरण था भारतवर्ष. क्या होली, क्या ईद, क्या दशहरा और क्या बकरीद, सब साथ मिल के मनाये जाते थे. और सिर्फ सांप्रदायिक सौहार्द ही नहीं, भारत संवैधानिक शालीनता का भी एक अद्वितीय उदाहरण था. यह वह काल था, जब हमारे नेतागण एक दुसरे पर अभद्र टिपण्णी नहीं करते थे, सब राजनेता सुसंस्कृत थे, सभ्य थे और सुशील थे. “भारतवासियों का जीवन सफल, स्वस्थ, समृद्ध और सुरक्षित कैसे बनाये” यही हर राजनेता का मूलमंत्र था.
वसुधैव कुटुम्बकम को चरितार्थ करते भारत की प्रमुख राजनैतिक दल की प्रमुख नेत्री एक इतालियन महिला थी. यह वह महान काल था जब भ्रष्टाचार और अत्याचार नहीं, शिष्टाचार और सदाचार भारतमाता के आभूषण हुआ करते थे. महिलाएं सुरक्षित थी और पुरुषों के साथ मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करती थी. देश में सूखे नहीं पड़ते था. भारत पचहत्तर दशमलव पांच तीन की रफ़्तार से विकास कर रहा था. समाचार वाले निर्भय होकर समाचार प्रसारित करते थे. दिल्ली प्रदूषण मुक्त थी. पाकिस्तान एवं अन्य पडोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबध थे. राष्ट्रपति शासन नामक प्रक्रिया कभी प्रयोग नहीं की गयी थी. हर घर में बिजली थी, जेएनयु, जादवपुर और हैदराबाद विश्वविद्यालय सरीखी संस्थाओं में विद्यार्थी राजनीती नहीं वरन विद्योपार्जन करते थे. देश सहिष्णु था. कश्मीर अमन पसंद लोगों की तपोभूमि थी.
परन्तु “सबै दिन ना होत एक समाना”. राम को वनगमन करना पडा था. कृष्ण के सामने यदुवंश का पतन हुआ था. चक्रवर्ती सम्राट हरिश्चंद्र को दुर्दिन देखने पड़े थे. अपनी प्राणप्रिय दमयंती को नल छोड़ कर चले गए थे. इन्द्रप्रस्थ में सुखपूर्ण जीवन बिताने वाले युधिष्ठिर पर जुए का भूत आरूढ़ हो गया था. स्वयं शंकर को अपने भोले स्वाभाव का दंड भस्मासुर के रूप में मिला था. वही त्रुटी भारतवासियों से भी हुई. ऐसी अलौकिक व्यवस्था को उन्होंने ठुकराने की ठानी. मातृस्वरूपा सोनिया और जगत्भ्राता राहुल को उन्होंने ठुकरा दिया.
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दो हज़ार चौदह के उस मनहूस वर्ष में, भारत वासियों ने भारत के प्रमुख राजनैतिक दल को मात्र चौवालिस स्थान देकर राजनैतिक उलटफेर कर दिया. परिणामस्वरूप हिन्दूहृदयसम्राट नरेन्द्र मोदी को भारत का प्रधान मंत्री चुन लिया गया. और आज भारत की दुर्दशा आपके सामने है. भारत की धर्मनिरपेक्षता लगभग समाप्त हो चुकी है. राजनैतिक शालीनता मानो दिवास्वप्न है, छलावा है, मृगतृष्णा है. महिलाएं मंदिर तक नहीं जा पाती.
आज कौशल भारत, कुशल भारत के अंतर्गत भारतीय असफलता के नए अध्याय लिख रहे हैं. जन धन के अंतर्गत भारत के निर्धन और निर्धन हो रहे हैं. गिव ईट अप के अंतर्गत भारत के गरीब चूल्हे के धुंए में अपने काले भविष्य की और एकटक देख रहे हैं. पियूष गोयल हर रोज़ नए नए गाँव की बिजली काट रहा है. भारत की विकास औसत गिर कर मात्र साढ़े सात रह गया है. दिल्ली प्रदूषण का गढ़ बन गयी है. मोदी के कारण देश में सूखा है. जेएनयु, जादवपुर और हैदराबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को देशविरोधी नारे लगाने तक की भी आजादी नहीं है.
और तो और मोदी ने मातृस्वरूपा सोनिया पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रखे हैं. मोदी के मंत्री कहते हैं की माँ ने करोडो का गबन किया.
क्या मोदी के मंत्रियों को पता है की माँ के परिवार ने भारत की स्वतंत्रता में कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी?
जवाहर जी ने चीन को भूमि भेंट कर विश्वप्रेम की अलख जगाई
इंदिरा जी ने इमरजेंसी लगाकर हमें अनुशाशन का पाठ पढाया
राजीव जी ने तोपों की नीलामी में उलटफेर कर विश्व में शान्ति का पाठ दिया
स्वयं सोनिया जी घाटे से जूझ रही नेशनल हेराल्ड को अपने गले से लगाया, मोबाइल के कालकूट विष से प्रजा को बचाने के लिए 2g रुपी विष का पान किया, ताकि भारत खेले कूदे नहीं बल्कि काम काज पर ध्यान दे इसलिए कॉमनवेल्थ गेम्स में उलटफेर किया, भारत को अंधकार से बचने के लिए उन्होंने कोयले तक को भोजन के ग्रास सदृश उदरस्थ किया.
मैं मोदी के मक्कार मंत्रियों से यह पूछना चाहता हूँ की क्या देश का प्रथम परिवार दो चार हज़ार करोड़ रुपये नहीं खा सकता?
क्या तकनीकी रूप से यह देश उन्ही का नहीं है?
क्या यह देश उन्हें कारागार भिजवाएगा?
क्या हम वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श भूल गए हैं.
यह प्रलयंकारी समय है. हम सीधे विनाश की और जा रहे हैं. मोदी को चेत जाना चाहिए. यह कांग्रेस का देश है, हमें एक अच्छी प्रजा की भाँती उनका सम्मान करना चाहिए.