Indian, Hindu या फिर Indian Hindu – ‘देश और धर्म में भिन्नता’ एक छलावा
राजस्थान की पूण्य भूमि पर एक वीर सपूत जन्मा था। नाम था राजा कान्हड़ देव (जालोर, राजस्थान)। सन 1297 की बात है अलाउद्दीन ख़िलजी ने कान्हड़ देव से कहा कि “जनाब, जालोर से मेरी सेना को गुजरने दो, पैसे-वैसे ले लेना……वो क्या है ना कि गुजरात को लूटने के लिए जाना है।” राजा कान्हड़ देव ने साफ़ मना कर दिया। अलाउद्दीन ख़िलजी दूसरे रास्ते से गुजरात में प्रवेश करता है और सोमनाथ मंदिर को लूट कर उसमे स्थापित शिवलिंग के टुकड़े टुकड़े कर डालता है। और जीत की निशानी के रूप में शिवलिंग के टुकड़ो को अपने साथ दिल्ली लेजाने की योजना बनाता है।
जब ये बात कान्हड़ देव को पता चलती है तो वे ख़िलजी का पीछा कर उसकी सेना को युद्ध में हराते हैं, 90,000 हिन्दू क़ैदियों को आज़ाद करवाते हैं और शिवलिंग के टुकड़ो को वापस हांसिल कर, गंगाजल से उन्हें पुनः पवित्र कर, जालोर के विभिन्न मंदिरों में स्थापित करवा देते हैं।
गुस्साया अलाउद्दीन ख़िलजी पुनः सैनयशक्ति एकत्रित कर 2,00,000 सैनिको के साथ जालोर पर हमला करता है। कान्हड़ के पास सिर्फ 50,000 सिपाही थे लेकिन वो भी 3 से 4 साल तक डट कर मुकाबला करते हैं और किले में एक भी दुश्मन को नहीं घुसने देते। अलाउद्दीन द्वारा लम्बे समय तक किले का घेराव करने के कारण सैनिक धीरे-धीरे भुखमरी का शिकार होने लगते हैं। राजा के दो नए-नए “मुसलमान” बने मंत्री गद्दारी करते हैं और अंततः सन 1311 में कान्हड़ देव व उनका पुत्र युद्ध में मारे जाते हैं, ख़िलजी जालोर जीत लेता है। पर तब भी वो सोमनाथ के उस शिवलिंग के टुकड़ो को हांसिल नहीं कर पाता। क्योंकि तब तक राजा कान्हड़ देव अपने विश्वशनीय ब्राह्मणों की मदद से शिवलिंग के टुकड़ो को पुरे भारत में वितरित करवा चुके होते हैं।
कान्हड़ देव ने सोमनाथ के शिवलिंग की कभी पूजा नहीं की थी। उनका तो अपना एक निजी शिवलिंग था। लेकिन उन्होंने सोमनाथ के शिवलिंग के लिए अपने प्राण, अपना परिवार, अपना राज्य सब न्योछावर कर दिए। क्यों? क्योंकि उनके राज्य का एक धर्म था। वो था सनातन हिन्दू धर्म। हिन्दू धर्म के चिन्ह को खंडित करना उनके राज्य की संप्रभुता को ललकारना था। उस समय धर्म और राज्य अलग नहीं हुआ करते थे। आज भी ऐसा ही है। ईसाई अमेरिका का मुस्लिम मिडिल ईस्ट से झगड़ा है, यहूदी इस्राइल का मुस्लिम फिलिस्तीन से झगड़ा है, हिन्दू भारत का मुस्लिम पाकिस्तान से झगड़ा है। कबूतर के आँख बंद कर लेने से वह बिल्ली के लिए अदृशय नहीं हो जाता। भारत भले ही अपने आप को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य माने पर दुनिया की नजर में वो एक अघोषित हिन्दू राष्ट्र ही है। कुछ छद्म विद्वानों की वजह से इस साधारण सी सच्चाई को मानने को कोई तैयार नहीं। जब तक धर्म और सरकार को अलग रखा जाएगा NIT श्रीनगर जैसे दुस्साहस होते रहेंगे। अगर तेहरवी सदी के राजा भी धर्मनिरपेक्ष होते तो सोमनाथ हज़ारों बार और लुटा होता। धर्मनिरपेक्षता राजा/राज्य को कठोर निर्णय लेने से रोकती है। धर्मनिरपेक्षता एडमिनिस्ट्रेशन के लिए क्रिप्टोनाइट का काम करती है।
कल गुडगाँव में एक कार पर लिखा देखा कि “I proud to be an Indian Muslim” तब मैंने सोचा की आज तक कभी किसी Indian Hindu की गाडी पर “I proud to be an Indian Hindu ” क्यों नहीं लिखा देखा?
क्योंकि, मानो या ना मानो पर यदि आप विश्व के किसी भी कोने में जाकर कहते हैं कि “I’m a proud Indian” तो ये मान लिया जाता है कि आप एक हिन्दू हैं। और यदि आप कहते हैं कि “I’m a proud Hindu” तो ऐसा मान लिया जाएगा कि आप एक भारतीय हैं। सरल शब्दों में आपके भारतीय होने का मतलब ही हिन्दू होना है और आप हिन्दू हैं तो मतलब भारतीय हैं। Hindu और Indian Hindu में कोई अंतर नहीं. तो ये रोज रोज का नाटक क्यों? क्यों हम अपने देश के एक कोने में भारत माता की जय नहीं बोल सकते? क्यों देश और धर्म के बीच ये झूठी दीवार बनी हुई है? देश एवम धर्म में भिन्नता की संकल्पना (The concept of separation of church and state) यूरोप में 1700 ईस्वी में आई। इससे पहले स्टेट (राज्य/शाषण) और चर्च एक ही थे। आज भी पश्चिमी देशों में राज्य और धर्म के बीच ज्यादा दूरी नहीं है। इसी कारण जब इसाई पूंजीवाद को नास्तिक साम्यवाद से खतरा महसूस हुआ तब द्वितीय विश्व युद्ध का आगाज़ हुआ। आज भी भारत पश्चिमी देशो के ‘separation of church and state’ के अभिनय से प्रभावित हो कर उनकी नक़ल करने के चक्कर में अपना ही नुकसान कर रहा है। पश्चिम सिर्फ धर्मनिरपेक्षता का नाटक करता है, वो धर्मनिरपेक्ष है नहीं। और भारत में हम जबरदस्ती अपने DNA में धर्मनिरपेक्षता घुसाने में लगे हैं।
आप स्वीकारें या नहीं पर विश्व आप को एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में मान्यता दे चुका है। होना तो ये चाहिए था की जिस प्रकार विश्व में कहीं भी पैदा हुए यहूदी को स्वतः ही इसराइल की नागरिकता मिल जाती है उसी प्रकार विश्व के किसी भी कोने में जन्मे हिन्दू को भारतीय नागरिकता मिल जाती। पर अभी तक तो हम अपने देश में ही भारतियों को भारतीय नागरिकता के अधिकार नहीं दे पाए। तभी तो आज तक भी NIT श्रीनगर में भारतीय तंख्वा पर पलने वाले कुछ पुलिस वाले अपने आप को पाकिस्तानी मान कर भारतीय छात्रो को पीटते है।
“भारत माता की जय” का नारा ही Indian Hindu का आज का ‘शिवलिंग’ है। ये चिन्ह है हमारी Indian Hindu की संप्रभुता का। इसकी रक्षा के लिए हमें कान्हड़ देव बनाना होगा और एक बार फिर ख़िलजी को हराना होगा।
The concept of church interfering in governance is very recent. Before that the state never interfered with people’s faith as long as they weren’t harming anyone. If you are going to refer from history at least do it completely. Ignoring parts of history for your convenience will just generate a biased opinion my friend. And you seriously need to work on your analogy game. Comparing a raiding, looting, raping savage army to a few students who are pissed off because of the lack of governance in their parts is way off and unfair.