मैं पंखा हूँ. मुझे पता है की ये घोषणा “मैं समय हूँ” जितना प्रलयंकारी तो नहीं है लेकिन जो है वो यही है की मैं पंखा हूँ. छत से लटका हुआ, अपने तीन डैनों को हिलाता हुआ, कभी कभी चार डैनों को हिलाता हुआ घूमता रहता हूँ. जब नया होता हूँ तो लाल होता हूँ, सफ़ेद होता हूँ, केसरिया और हरा भी होता हूँ लेकिन अक्सर धूल खा खा के मटमैला हो जाता हूँ. ए.सी. के युग में भी अपनी उपयोगिता दर्शाता हुआ निरंतर, दिन भर, रजनी भर, जीवन भर घूमता रहता हूँ.
मैं एक आन्दोलनकारी हूँ. जी हाँ सही सुना आपने. मेरी संरचना ही ऐसी है, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का अद्भुत संगम, इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग के मुरीद ए.सी. के “फैन” क्या समझेंगे इस संरचना को. वैसे तो मैं निस्पंद, निर्जीव सा, उल्टा लटका जमीन को निहार रहा होता हूँ लेकिन बस एक स्विच दबाने भर की देरी है, जैसे ही मेरे अन्दर विद्युत् का प्रवाह होता है, वैसे ही मेरे डैनें घूमने लगते हैं और आस पास की हवा को आंदोलित करते हैं, और फिर वो हवा अपने आस पास की हवा को आंदोलित करती है इस प्रकार मैं एक आन्दोलन के माध्यम से पूरे कक्ष को हवा से भर देता हूँ. अब शायद मैं जेपी या गाँधी जैसा लग रहा होऊंगा.
कल ही मेरी ही जाति का एक गरीब आन्दोलनकारी पंखा एक मंझे हुए राजनैतिक मसखरे के ऊपर कूद गया. हमारी पंखा जाति में सिर्फ आन्दोलनकारी नहीं वरन कुछ लड़ाके भी होते है. पंखा कुल का पितामह होने के नाते उससे पूछा था की यकायक फिदायीन बनने का फितूर क्यूँ सर सवार हो गया था उसके. तो उसने बताया की वो तंग आ गया था. बर्न आउट हो गया था वो राजनैतिक उहापोह में. उसने कहा की पानी सर के पार था अब, था वो बस एक पंखा ही पर क्या पंखे का कौनशीएंस नहीं होता है?
उसने बताया की हर रोज़ उसे ट्रक में, दर्ज़नो और पंखो, माइक, बाजे, लडियां, झंडियाँ, झालरें, कनात, पंडाल, बांस-बल्लियाँ, तख़्त और ऐसी तमाम चीज़ों के साथ लाद दिया जाता था, और उबड़ खाबड़ सड़कों पे रोज घसीटा जाता था. उसने सबकुछ सहा था एक अच्छे एम्प्लोयी की तरह, जॉब की मजबूरियां और हैज़र्ड्स समझ कर लेकिन जब राजनैतिक मसखरा झूठों के शीश महल बनाने लगा और गरीब जनता तालियाँ बजाने लगी तो उससे रहा नहीं गया और वो कूद गया उस राजनैतिक मसखरे पर.
उसने बताया की राजनैतिक मसखरा खुद को जाति विशेष का हितैषी बता रहा था, गरीबों का अन्नदाता बता रहा था, समाज के एक वर्ग को आक्रमणकारी तो दुसरे वर्ग को पीड़ित बता रहा था, अपने पुराने दुश्मन को अपना दोस्त बता रहा था, अपने खानदान के लोगों को भविष्य का भाग्यविधाता बता रहा था, गाने गा रहा था, गंवई लहजे में चुटुकुले सुना रहा था. उसने कुछ लोगों को पैसे दे रखे थे जोर जोर से हंसने के और उनके देखादेखी बाकी गरीब भी कन्फ्यूज़न में हंस रहे थे. जैसे भगवान् श्री कृष्ण नें शिशुपाल की सौ गलतियां माफ़ की थी वह भी उसके चुटकुलों पे क्रोध में जोर जोर से हिलता रहा और अंततः सुदर्शन चक्र बनकर राजनैतिक मसखरे पर कूद पडा. पर उसका उद्देश्य मसखरे की मृत्यु नहीं थी, उसे तो बस ये बताना था की जब पंखे झूठ से इतने क्रोधित है तो जनता को सोंचो.
मैं सहमत हूँ अपने पंखा बिरादरी के उस जोशीले नौजवान से जिसने झूठ सुनने से इनकार कर दिया और जनता के गुस्से का सुदर्शन चक्र बनकर टूट पड़ा राजनैतिक मसखरे पर. ये देश बड़ा है, यहाँ की राजनीती व्यापक है और मसखरे असंख्य. लेकिन जिस दिन देश की जनता ने वैसा करना शुरू कर दिया जैसा की मेरे शूर वीर पंखे ने किया, सोंचो क्या होगा?