बात बहुत पुरानी है | रामायण अभी लिखी जानी बाकी थी | पता नहीं उस समय तक किसी का इरादा भी था कि नहीं | ज्यों त्यों लिख ही दी गयी | परिणाम अच्छा ही रहा | पर अगर आज कोई पूछे कि रामायण में से ऐसा एक किरदार बताओ जिसको अब तक गीता प्रेस गोरखपुर से रॉयल्टी मिलनी चाहिए तो वो शायद कैकेयी ही होंगी | कैकेयी ही क्यूँ ? अरे भाई , ये चरस के बीज बोने वालों का भी अपना ही महत्त्व होता है | लड़का राजा नहीं बन पा रहा था | माँ को चिंता नहीं होगी तो किसे होगी | जा के बैठ गयीं कोप भवन में | जंतर मंतर नहीं था न साहब उस समय | होता भी तो केजरीवाल जी के पर-दादा की एडवांस बुकिंग होती | पर वो तो डेंगू वाले मच्छर रहे होंगे |
अब आप ज़्यादा दिमागी घोड़े मत दौड़ाइए | बात कैकेयी की ही हो रही है शहज़ादे की माँ की नहीं | वैसे भी भरत उतने लफंगे नहीं थे की अयोध्या की गलियों में पिताजी का ही भौकाल देते रहते : ” जानता है कि मेरा बाप कौन है, ट्रांसफर करा दूंगा ” ! ये अखंड मूर्खता की महामारी तब तक नहीं फैली थी | खैर वापस आइये | बैंकाक हर किसी के नसीब में नहीं | कलयुग में लौट आइये | हाँ वहीँ जहाँ हंस दाना चुग रहा और कौवा मोती खायेगा | लिखने वाला भी कोई मनुवादी रहा होगा, आरक्षण व्यवस्था पर करारा व्यंग मार गया | आज कल भी कुछ ऐसा ही हाल चल रहा है| अपने रवीश बाबू भी नाराज़ हैं | कोप भवन तो नहीं गए परन्तु आज के युग में सोशल मीडिया त्यागना भी देश पलायन जैसी विवशता से कम है क्या ! जब तक ठेठ देहाती में बाटी-चोखा के बारे में ट्वीटिया नहीं लेते थे इटालियन हज़म नहीं होता था | मजबूर थे लेखक जो ठहरे | ऐसा न था कि उनके चाहने वाले कम हो गए थे |
आज भी सेकुलरों की फ़ौज़ फूल बन ‘ चाह नहीं मैं सुर बाला के गहनों में गूथा जाऊं ‘ का राग अलापती धरती की बुद्धिजीविता की ठेकेदार बनी खड़ी है | फिर ऐसा क्या हो गया ? ये नाराज़गी क्यूँ ? पत्थर तोड़ने वाले मांझी के ही राज्य के व्यक्ति का दिल पत्थर का क्यूँ हो गया ? डीएनए पत्थर से मैच कर गया क्या ! जाने दीजिये, लोग बुरा मान जाते हैं जब डीएनए की बात होती है तो | कुछ वामपंथी लौंडे कह रहे थे कि रवीश गुरु जी संघी लौंडों से त्रस्त थे | ये संघी बात-बात पर देशभक्ति का सर्टिफिकेट कैंसिल कर देते हैं | आपिये तो वैसे भी देश भर की ईमानदारी का सर्टिफिकेट कैंसिल कर चुके हैं | अपने बनाये हुए सर्टिफिकेट के नीचे ‘नक्कालों से सावधान, असली दुकान यही है‘ क्यूँ नहीं लिख देते ये लोग ? अखबारबाज़ी से समय मिलेगा तो देखेंगे न ! क्या कहा? तब ये फिल्मों का रिव्यु देंगे ? इनका सब माफ़ | हाँ तो बात हो रही थी कि संघी रवीश जी से नाराज़ थे एंड वाईस वर्सा इज़ आल्सो ट्रू ! इनके दुष्प्रचार में क्वालिटी थी और उनके विरोध में क्वांटिटी अधिक थी | चार संघी दोस्त मिल के मजाक उड़ा लेते थे और खुश हो जाते थे | ये जी भर के गरिया भी नहीं पा रहे थे | वो क्या है न कि संघी लौंडे उकसा के ट्वीट करवाते हैं फिर उसका स्क्रीन-शॉट छुपा के लैपटॉप में रख लेते हैं | ब्रह्मास्त्र नहीं है बे वो ! रवीश जी मन मसोस के रह जा रहे थे |तो हमको आपको छोड़ गए ? पर ये क्या बात हुई ? कौन सा वो आज से गाली-गलौच कर रहे थे ? धमकी तो तब से दे रहे जब से उनकी सरकार भी न थी | अब तो खैर चप्पा-चप्पा भाजपा गाते घूम रहे | वो तो ठहरे दंगाई ‘थाम्प्दायिक’ ताकत वाले, आप तो समझदार थे, मतलब हैं? आपकी कामयाबी की कहानी एक पन्ने की लघु कथा नहीं, पूरी किताब है जिसे आपने अपने पसीने की स्याही से भरा है | बिहार के एक छोटे से ज़िले से आते हैं आप | सारा जीवन गाँव की ही बात की | और अब जब गावों को शहर बनाने की बारी आई तो मैदान छोड़ भाग रहे आप ?
आप कहेंगे कि टीवी पर तो आता हूँ अभी भी, भागा नहीं | पर ज़नाब, वहाँ आपसे सीधा संवाद सबको प्राप्त नहीं है | आप ही सवाल पूछते हैं, जवाब भी आपके मन-माफिक ही होता है | सारांश भी ठेठ भाषा में आप ही देते हैं |आप भी जानते हैं कि बिहार की दुर्गति का ज़िम्मेदार कौन है | आप जैसे कितने थे जो आपके जितना साहस और जीवटता न दिखा पाये | कर रहे होंगे महाराष्ट्र या दिल्ली में कहीं मजदूरी | हर दिन किसी न किसी ठाकरे से जान बचाते हैं | भाजपा से आपका विरोध छुपा नहीं | आपके चैनल के क्या ही कहने | भागलपुर में भाजपाई दोषी न थे, चारा घोटाला भाजपाइयों ने नहीं किया | फिर ऐसी कुंठा क्यूँ ? हाँ कुछ हैं उनमें उत्पाती | कुछ तो भ्रष्ट भी हैं | आधे से ज़्यादा संघी हैं | संघी होना गुनाह है या नहीं ये किसी और दिन तय करियेगा | पर क्या उनके विरोध मात्र के लिए जंगल राज को चुना जाएगा ? आज आप भंवर में फंसे हैं | बिहार चुनाव गले की हड्डी बन गया है | आप भाजपा का समर्थन कर नहीं सकते | महागठबंधन की तो एक-एक गाँठ से वाकिफ़ हैं आप | सुशासन बाबू अलग से लड़ रहे होते तो भी आत्मा को संतुष्टि मिल जाती पर अबकी वो भी सुविधा नहीं | निष्पक्ष रिपोर्टिंग आपके चैनल के स्वभाव में ही नहीं | समय और लहर कुछ ऐसी है की निष्पक्ष रिपोर्टिंग भी महागठबंधन का विरोध ही झलकती है | हम और आप कब तक विशेष राज्य का दर्ज़ा मांगेगे ? खुद अपने दम पर बनाते हैं न बिहार को एक विशेष राज्य ! आपके विरोधियों का भी एक बड़ा वर्ग आपको आपके चैनल से अलग हट कर देखना चाहता है | वेटिकन के चंदे में बिहार के पसीने की महक नहीं है | वापस आइये साहब | विरोध वगैरह चलता रहेगा | चाय पे चर्चा वाली चाय का मज़ा ही विरोध की पत्तियों से आता है | रवीश बाबू आप क्यूँ कैकेयी बन रहे ? बन भी रहे तो आपका भरत बिहार है, कोई यादव या गांधी नहीं !
हमारे यहां एक इलाका है। कागलनगर। वहाँ के गोलगप्पे बड़े फेमस हुआ करते थे। चठक, करारे, मिर्ची से लैस। आज उन गोलगप्पों का मज़ा आ गय… इस प्रेम पात्र को पढ़ कर। grin emoticon grin emoticon
sahi likha hai.. ravish bhai aajkal deshdrohi evam arajak ho gaye hai
भागना उसे कहते हैं जो मोदीजी ने करन थापर और किरण बेदीजी ने अरनब के शो पर किया था| रवीश एकमात्र ऐसे कद्दावर पत्रकार हैं जिनके शो पर आने की हिम्मत अभी तक मोदीजी नहीं कर पाए हैं|
तो जब तक वे उपलब्ध नहीं हैं, रजत शर्मा नामक मंथरा से काम चला लीजिये|
Kuye ke her barsaati bedhak(bihari mein bole to beng) ko, jo ulta tairta hain, usko lagta hain ki saare sarang ka bhaar usi ne utha rekha hain..
Succhai kya hain..yeh to aap jante hi hoge..
Kisi ko apne show per aakar bolne na dena ..ptarkarita nahi..chu****pa hain..Coincidence ki baat hain ki yeh Raveesh Kumar mere school ka alumini hain aur yeh sab hum logo ko sikhaya jata nahi..apne aap aa jata hain..
ये तो सुपारी मैन है।
Khabees kumar to mere liye usi din mar gaya tha jab isne mujhe Twitter pe block kiya tha :(
बेहतरीन विश्लेसन .. मै भी उसी चंपारण से हु .. जहाँ से रविश बाबु है .. उनकी दुविधा ये है की किसको बेहतर बातये .. एक नितीश जी थे वो भी रावण के गोद में जा के बैठ गये …