विपक्ष की समुचित भूमिका क्या होनी चाहिये-सिर्फ विरोध करना । सत्ता पक्ष के किसी भी योजना का डटकर विरोध करना,उसके किसी भी कार्यक्रम में कमियॉ ढ़ूढ़ना, उसकी बुराइयॉ तलाशना, उसके कमजोर पक्ष की ओर ध्यान केन्द्रित करना, उसके नकारात्मक पहतुओं की तरफ देखना । सत्ता पक्ष के किसी भी अभियान को ज्यों का त्यों स्वीकार करना तो विपक्ष की कमजोरी उजागर करती है । विपक्ष यदि उसके अभिय़ान को सुचारु रूप से चलने दे तो फिर विपक्ष की भूमिका ही संदेह के घेरे में आ जाती है । विपक्ष यानि हंगामा, कुछ न कुछ उथल-पुथल तो मचानी ही चाहिये विपक्ष को । ताकि उसका, उसके नेताओं व उसके दल का अस्तित्व व वर्चस्व बना रहे ,उनका नाम सुर्खियों में बना रहे ।
यदि सत्ता पक्ष द्वारा पेश किया गया बिल, अध्यादेश या संशोधन उसके मूल स्वरूप में स्वीकार हो गया और कानून की शक्ल में परिवर्तित हो गया तो इससे विपक्ष की निष्क्रियता सिद्ध हो जायेगी । लाख खूबियों के बावजूद किसी भी बिल, अध्यादेश या संशोधन को एकाध बार तो वापस करवाना ही चाहिये । उस पर बहस करवाने में अपनी पटुता प्रस्तुत करनी चाहिये । यदि बिना बहस, बिना हो-हल्ले, बिना धरने-प्रदर्शन, बिना नोक-झोंक,बिना जद्दो-जहद के कोई भी बिल, अध्यादेश या संशोधन संसद में पास हो जाता है तो यह विपक्ष की अक्षमता उजागर करती है । सत्ता पक्ष को विपक्ष का भय सताना ही चाहिये । उसे यह लगना ही चाहिये कि विपक्ष सजग है,सो नहीं रहा है । वह सत्ता पक्ष के हर कदम पर नजरें गड़ाये हुए है । वह यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि देश के हित-अहित का मसौदा सत्ता पक्ष अकेले तय कर ले । उसे यह चाहिये कि विपक्ष से इस विषय में बातचीत करे ।
यदि सत्ता पक्ष बातचीत करना चाहे तो विपक्ष को चाहिये कि वह इसमें कोई मीन-मेख निकाले । यदि सत्ता पक्ष बातचीत किये बिना कोई निर्णय लेने की सोचे तो विपक्ष को उसकी टॉग खींच लेनी चाहिये । यानि विपक्ष का काम है – खींचना । यह भी कोई बात हुई कि सरकार बेलगाम चलती रहे और बे रोक-टोक अपना कार्यकाल पूरा कर ले । मजा तो तब है जब बात बे बात पर किसी मंत्री या सरकार से इस्तीफा देने को कहते रहें । इससे विपक्ष का जनता पर रोब बना रहता है । यदि किसी राज्य में कुछ घटता है और केन्द्र सरकार राज्य से रिपोर्ट मॉगे तो कहना चाहिये कि केन्द्र सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने में अक्षम है । यदि केन्द्र सरकार अपनी तरफ से कुछ करने की सोचे तो कहना चाहिये कि केन्द्र सरकार बिना वजह राज्य सरकार के काम काज में दखल दे रही है । यानि सरकार को उलझाये रखना चाहिये ।
यदि केन्द्र सरकार की योजना यें जनता को भा गईं तो विपक्ष का सफाया हो जायेगा । इसलिये ऐसा कुछ करना / कहना चाहिये । जिससे हरदम कुछ गरमागरम वातावरण बना रहे । दलित,गरीबी,भुखमरी के ऩाम पर कुछ न कुछ चटपटा मसालेदार वक्तव्य देना चाहिये । जिससे लोग विपक्ष की दलीलें सुनने को बाध्य हो । यदि लोग सीधे सीधे इन बातों को न समझ पायें तो कुछ कार्यकर्ताओं को यह जिम्मेदारी दी जानी चाहिये जो लोगों को इन बातों को घोलकर पिला सकें । विपक्ष का कोई भी वक्तव्य ऐसा नहीं होना चाहिये जिससे सत्ता पक्ष की सराहना होती हो । सराहना हो गई तो विपक्ष कैसा । विपक्ष होना ही ऐसा चाहिये जो सत्ता पक्ष के दिन को रात और रात को दिन कहे तभी काम चल सकता है । बजट में रियायतें दी गई हों तो कहिये चुनाव को ध्यान में रखकर बना या गया है बजट । इस में विकास के लिये धन जुटाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है । यदि अतिरिक्त कर लगाये गये हों तो कह दीजिये- बजट आम आदमी विरोधी है , गरीब विरोधी है , किसान विरोधी है , बेरोजगार विरोधी है आदि –आदि । यानि जो कुछ है, खराब ही खराब है । अच्छा कुछ भी नहीं है।
– राम गोपाल(मेल के द्वारा)
वही जो १० साल तक बीजेपी की थी?
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