ज़ालिम ज़माने की मार से तंग आकर
दिनोंदिन बढती महंगाई से घबरा कर
हमने आत्महत्या की सोची
फिर सोचा – ज़िन्दगी भूख में कटी है, अब भूखे क्यों मरें
जब मरना ही है तो कुछ खाकर क्यों न मरें
फिर काफ़ी सोच विचार कर
तय किया कि मरा जाए ज़हर खाकर
सोचा – अपने बजट में खाने को इससे सस्ता और क्या आएगा
भूख मिटे न मिटे, पर दम तो अवश्य निकाल जाएगा
इससे पहले कि हम बाज़ार जाते, जाकर ज़हर लाते
किसी ने डोर-बेल टुनटुनाई, हमने पूछा – कौन ?
बाहर से एक मिमियाती हुई आवाज़ आई – बाबूजी, सेल्समैन, और कौन ?
बाबूजी हम कोबरा इंटरनेशनल की ओर से आए हैं,
आपकी सेवा में उनका अमृत ब्रांड ज़हर लाए हैं
बाज़ार में डेढ़ की मिलेगी, आपकी ख़ातिर स्पेशल कीमत सवा रुपया है
दो पुड़ियों के साथ बिलकुल मुफ़्त एक और पुड़िया है
आशा है आप दो पुड़ियाँ ले जाएंगे
आप नहीं तो आपके बीवी बच्चे खाएंगे
हमने कहा – भाई, बीवी बच्चे नहीं हैं, अकेले हम हैं
वह आँखें फाड़ते हुए बोला – बाबूजी, फिर आपको किस बात का ग़म है ?
आखिरकार मांग कर पड़ोसियों से चंदा, खरीद ली एक पुड़िया
और खाने के लिए कल का मुहूर्त भी निकलवा लिया
नहा-धो अगली सुबह हमने बाबा भोलेनाथ की भांति विषपान किया
कड़वा लगा तो बीच-बीच में दो-चार घूँट शर्बत भी उड़ेल लिया
आखिरी घूँट लेने से पहले ही कदम लड़खड़ाने लगे
बेहोशी में हम न जाने क्या-क्या बड़बड़ाने लगे
आया जब होश तो सामने कुछ लोग खड़े थे
सब के सब एक जैसे लिबास ओढ़े थे
आँखें खोलते ही हम एक भूल कर बैठे
उस जगह को परलोक और उन्हें यमदूत समझ बैठे
तभी कोई बोला – दादा, कैमोन आशेन
सुनकर पहले तो हम उछले
फिर संभले, और बोले
कैसा यमदूत है, मुर्दे का पूछ रहा हाल है
हाल पूछा भी तो बांग्ला में, यह परलोक है या बंगाल है
दूसरा बोला – जी नहीं, यह अस्पताल है
और माफ़ करना, हम डॉक्टर हैं, यमदूत नहीं
शुक्र करो अभी तक वर्तमान हो भूत नहीं
हमने तुम्हें मरने से बचा लिया है
टेम्पोररी ही सही मगर ज़िन्दगी के संग तुम्हारा ब्याह रचा दिया है
हमारे होते तुम कैसे मरोगे
मर गए मियां तो हमारा बिल कैसे भरोगे
भला हो तुम्हारे पड़ोसियों का जो तुम्हें हमारे पास ले आए
तुम्हरी छेदों भरी नैया मझधार से निकाल लाए
हमने मन ही मन कहा – कैसे पडोसी और काहे की भलाई
अरे इतनी से बात आपकी समझ में नहीं आई
उन्हें भी एक ही चिंता सता रही है
मेरे मरने पर उनके कर्जे की रकम जो जा रही है
डॉक्टर बोला – अच्छा हुआ तू आज ही यहाँ आ गया
तू इस कदर बीमार है कल तक तो तेरा राम नाम सत्य हो जाता
अभी तक तो इस लोक का वासी है कल शायद स्वर्गवासी कहलाता
हम बोले- डॉक्टर साहब बीमारी वीमारी कुछ नहीं है
अरे वह तो ज़हर में मिलावट ज्यादा और ज़हर कम था
वरना हमें बेहोश कर दे इतना किसमें दम था
डॉक्टर बोला – बात बिगड़ गयी है
बीमारी खतरे के लेवल तक चढ़ गयी है
चिंता मत करो तुम्हारी हालत संभल जाएगी
तुम्हारी तबीयत यूँ तो फटा हुआ टायर है मगर चल जाएगी
हम तुम्हारी दवा ज़रूर करेंगे मगर पैसे एडवांस लगेंगे
कहीं मर गए तो पैसे क्या यमराज भरेंगे
हम डॉक्टर हैं, डॉक्टरी हमारा काम है
बाकी रही ज़िन्दगी और मौत, तो उन पर किस की लगाम है
मेरे प्यारे पडोसीगण कब काम आते
पैसे वसूलने का सुनहरा मौका क्यूँ गंवाते
उन्होंने हमारे बर्तन-भांडे कपडे-लत्ते सब नीलाम कर दिए
नीलामी से जो पैसे मिले, अपने अपने नाम कर लिए
गलती से जो थोड़े बच गए तो उन्हें हमारी दवा-दारू में लगा दिया
दवा हमारी खरीदी और दारू अपने लिए लिया
दवा देते हुए डॉक्टर बोला – इस दवा का अभी अभी मार्केट में आगमन हुआ है
किस्मत वाले हो कि तुम्हारे ही हाथों इसका उदघाटन हुआ है
इतना कहकर उसने हमें पहला घूँट पिलाया
अगले ही पल हमने खुद को यमलोक में पाया
यमराज बोले – हैरान ना हो वत्स, यह सब मिलावट की माया है
तभी तो इस लोक में तू बिना किसी रिज़र्वेशन के आया है
मिलावट से मरने वालों को यहाँ डायरेक्ट एडमिशन है
मिलावट करने वालों को हमारी फुल परमिशन है
क्योंकि पॉपुलेशन इतनी बढ़ गयी है कि हमारे यमदूत टें बोल गए हैं
भला हो मिलावट करने वालों का जो धरती पर हमारी ब्रांच खोल गए है
मिलावट की माया देखो, बैठे-बैठे काम होता है
मारती है मिलावट, हमारा नाम होता है
लकी हो कि नर्क में जा रहे हो, वरना वेटिंग लिस्ट में ही रहते
स्वर्ग तो तुम्हें तब मिलता प्यारे, जब खुद मिलावट करते
आज भी नर्कलोक में मेरी कहानी सुनकर लोग हँसते हैं
मगर हंसनेवाले शायद यह भूल जाते हैं
कि आत्मा उनकी भी मिलावट की मारी है
ईमान उनका भी मिलावट का मारा है
उनकी जडें भी मिलावट का दीमक चाट रहा है
ज़िन्दगी के लिफ़ाफ़े में छुपाकर मौत बाँट रहा है
असल में मेरे भाई यही तो दुनिया है
जहाँ कभी ज़िन्दगी की किताब में मौत का फ़साना मिलता है
और कभी मौत के साए में भी जीने का बहाना मिलता है
अति उत्तम मित्र..!
छोटी उम्र में ही सार समझ लिया था आपने :)
Ekdum sahi.