भारत में 4 स्थानों पर कुंभ का मेला लगता हैं। प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। लेकिन देश में एक ‘5वाँ’ कुंभ भी होता हैं। एक ऐसा कुंभ जिसकी ख्याति अब प्रदेश से निकलकर देश-विदेश तक फ़ैल चुकी हैं। छत्तीसगढ़ की धार्मिक नगरी और शंकराचार्य जी के शब्दों में कहे तो मध्य भारत का प्रयाग ‘राजिम’ में। राजधानी रायपुर से लगभग 45 किमी की दूरी पर महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के त्रिवेणी संगम के तट पर राज्य के धर्म एवं सांस्कृति विभाग द्वारा इस कुंभ का आयोजन किया जाता हैं।
2005 से राजिम में लगने वाले इस मेले को ‘ राजिम – कुंभ ‘ नाम दिया गया। दरअसल आस्थाओं की रोशनी जब एक साथ लाखों ह्र्दयों में उतरती है, तब हम उसे कुंभ कह लेते हैं।
राजिम का यह भव्य धार्मिक महोत्सव प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक लगता हैं। जगतगुरु शंकराचार्य जी का कहना था क़ि – “साधु-संत ही कुम्भ की आत्मा हैं।” इसी वक्तव्य को सिद्ध करता हुआ राजिम कुंभ 15 दिनों तक देश के हजारों साधु-संत, नागा बाबाओं, अघोरियों का साक्षी बनता हैं। ऐसा भी कहा जा सकता हैं क़ि इन्हीं साधु-संतों के आशीर्वाद से मेले के रूप शुरू हुआ एक महोत्सव आज विश्व ख्याति प्राप्त ‘महाकुंभ’ बन चुका हैं। यह एक ऐसा महोत्सव हैं जिसने देश भर में छत्तीसगढ़ को कला, संस्कृति और धर्म के क्षेत्र में नयी पहचान दी हैं। राजिम कुंभ को धार्मिक और सामाजिक दोनों ही रूप से पूरा समर्थन प्राप्त हैं जिस वजह से यह इतना सफल हैं। राजिम कुंभ में शामिल साधु-संतों दरबार, कई अखाड़ों की पालकियां, नागा बाबाओं के दरबार के साथ-साथ अनेकों संतों के समागम होते हैं।
10 फरवरी से शुरू हुये इस आयोजन को इस बार राजिम महाकुंभ कल्प-2017 नाम दिया गया है। कुंभ के 12 वर्ष पुरे होने पर इस वर्ष विशेष तैयारियां की गयी हैं। इस वर्ष तीन शाही स्नान होंगे। 10 फरवरी माघ पूर्णिमा, 19 फरवरी जानकी जयंती और 24 फरवरी महाशिवरात्रि के शाही स्नान के साथ यह कुंभ समाप्त होगा। लोगों की मान्यताएं हैं क़ि राजिम संगम में स्नान करने से सारे रोग, सारे पाप से मनुष्य मुक्त हो जाता हैं।
राजिम छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित हैं। धार्मिक एवं सांस्कृतिक नज़रिये से राजिम एक ऐतिहासिक नगर हैं। यहाँ 8वीं-9वीं शताब्दी निर्मित राजीव लोचन मंदिर हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता हैं क़ि जगन्नाथ पुरी की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक इस मंदिर का दर्शन ना किया जाये। संगम के बीचो-बीच कुलेश्वर महादेव का मंदिर हैं। वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक ‘महाप्रभु वल्लभाचार्य’ का जन्म भी राजिम से लगे चंपारण में हुआ था। राजिम ऐतिहासिक रूप से शैव एवं वैष्णव संप्रदाय की मिश्रित भूमि हैं। श्रद्धालुओं के लिये श्राद्ध, पिंड दान, धार्मिक कार्यों के लिये राजिम का त्रिवेणी संगम प्रयाग के संगम जितना ही पवित्र हैं।
धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण के आलावा राजिम कुंभ छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति के प्रस्तुतीकरण के लिये भी जानी जाती हैं। इस महोत्सव में राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय कलाकारों को ना बुलाकर छत्तीसगढ़ के कलाकारों को प्राथमिकता दी जाती हैं। लोक नृत्य, संगीत, पंडवानी जैसे अनेकों प्रस्तुति छत्तीसगढ़ी कलाकारों द्वारा दिए जाते हैं।