दिसंबर 1992, बाबरी विध्वंस। अयोध्या में रामलला की जन्मभूमि पर स्थित बाबरी मस्ज़िद रुपी विवादित ढाँचा को गिराया गया था। तब से लेकर अब तक इस एक कृत्य के लिये आज भी उंगली उठायी जाती हैं। एक बाबरी गिरने पर ‘क्रिया के प्रतिक्रिया’ के रूप में आज तक इस देश ने कितने ही सांस्कृतिक और हिंसात्मक दंश झेला हैं। भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं पर लगातार हमले हुये। लेकिन देश चुप रहा, मीडिया भी चुप रहा और तो और इसे बहुसंख्य समुदाय की ही गलती बताने लगा।
बाबरी से लेकर दादरी तक छोटी से छोटी बातों में भी ‘हिंदू तालिबान’ और ‘हिन्दू आतंकवाद’ परोसने वाला मीडिया और वामपंथी गिरोह छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में लगभग एक हजार वर्ष पुरानी भगवान गणेश की प्रतिमा को पहाड़ी से गिराकर खंडित करने पर अब चुप्पी साधे बैठा हैं। पुलिस और पुराविदों के मुताबिक इस घटना में नक्सलियों का सीधा हाथ हो सकता हैं। मूर्ति का लगभग 80% भाग 56 टुकड़ों में घाटी से प्राप्त हुआ हैं। फ़िलहाल पुराविदों ने रसायन द्वारा इसे फिर से जोड़ने की योजना बना ली हैं। लेकिन आस-पास सुरक्षा के इंतजाम अभी भी नहीं हैं। ये ऐसा देश हैं जहाँ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मस्ज़िदों के लाउडस्पीकर उतरवाने से लेकर रमजान मंदिरों की घंटियां तक बंद करवाने वाले राजनैतिक ठेकेदार भी इस घटना में अनजान बन बैठे हैं। यही कोई हज़ार साल पुराना मस्ज़िद या चर्च होता तो क्या ये लोग ऐसे ही चुप्पी साधे रहते?
दरअसल यह दक्षिण बस्तर का क्षेत्र हैं जोकि पूर्ण रूप से उग्र माओवाद से प्रभावित हैं। हवन-पूजा को भी प्रदूषण का कारक मानते हुये विरोध करने वाले स्वघोषित बुद्धिजीवियों का इस मामले में चुप्पी साधने का यह बड़ा कारण हैं। हमनें बाबरी, दादरी, रमजान, अख़लाक़, कन्हैया जैसोे पर घंटों प्राइम टाइम चलते देखा हैं। इस देश में तो इन बुद्धिजीवियों द्वारा अभिव्यक्ति के नाम पर अफज़ल और हाफिज़ सईद को भी समर्थन किया जाता हैं। धर्मनिरपेक्षता के इन फर्ज़ी ठेकेदारों ने तो धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर विशेष समुदाय को सड़क पर ‘इबादत’ की भी इजाजत दे दी। लेकिन बात जब बहुसंख्य समुदाय के धार्मिक स्वतंत्रता और सुरक्षा की आती हैं तो ये कहाँ चले जाते हैं?
दंतेवाड़ा में जो घटना हुई हैं उसका जिम्मेदार इनके वैचारिक मित्रों को इसलिये भी माना जा सकता हैं क्योंकि गणेश मूर्ती के प्रसिद्धि से उस जगह पर लोगों की आवाजाही बढ़ी थी, इससे नक्सलियों को परेशानी महसूस हो रही थी, संभवतः जिसके कारण उन्होंने प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया।
असुरक्षा का भय भी एक कारण हो सकता हैं। लेकिन यह कृत्य करने वाला जो भी हो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिये।
घटना के जाँचकर्ता पुराविद अरुण शर्मा और उनकी पुराविदों की टीम के अनुसार इस प्रतिमा को पहले तोड़ने की कोशिश की गयी किन्तु नहीं टूटने पर इसे गिराकर तोड़ा गया हैं। इस पहाड़ी से पहले भी सूर्यदेव की मूर्ति गायब हो चुकी हैं। मूर्ति के खंडित होने से आस-पास के ग्रामीण काफ़ी आक्रोश में हैं, और होना भी चाहिए। यह आक्रोश सिर्फ वहाँ के ग्रामीणों या छत्तीसगढ़ वासियों को ही नहीं अपितु पुरे देश के बहुसंख्य समुदाय में होना चाहिए। आज इन्होंने एक मूर्ति तोड़ी हैं कल मंदिर तोड़ेंगे और परसो आपके घरों को। आज जनता को आगे आना होगा, और जनता को एकजुट होकर सरकार के सामने अपने ऐतिहासिक, धार्मिक धरोहरों को सहेजने और उनकी सुरक्षा के लिये जंग लड़नी पड़ेगी। शासन-प्रशासन की इस लापरवाही को हम इस तरह से अनदेखा करते रहेंगे तो ये स्वहित में हमारी भावनाओं, हमारे सांस्कृतिक मूल्यों से खेलते रहेंगे।