ढोलकल गणेश की एक हजार साल पुरानी प्रतिमा पहाड़ से गिरी या गिरायी गयी?

हजारों वर्षों में पुरे विश्व में सभ्यताओं का आदान-प्रदान हुआ हैं। लेकिन दुनिया में आज भी कुछ ऐसी जगह बची हैं जहाँ मानव सभ्यता नाम मात्र की रही हैं जिसमें बाहरी सभ्यता का मेल-मिलाप नहीं दिखता। ऐसी ही एक जगह स्थित हैं छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य क्षेत्र में। बस्तर के समीप दंतेवाड़ा से 24 किमी दूर बैलाडीला। बैलाडीला में की स्थित ढोलकल नामक पहाड़ी पर समुद्र तल से 2994 फ़ीट की ऊंचाई पर भगवन गणेश की प्रतिमा स्थापित थी। ‘थी’ का मतलब यह हैं क़ि इस प्रतिमा को अब खंडित कर दिया गया हैं। 6 फ़ीट की यह मूर्ति ग्रेनाइट से बनी हुई थी, जिसे अज्ञात लोगों ने पहाड़ी के चोटी से नीचे फेंक दिया। गणतंत्र दिवस के दिन लोगों के वहाँ पहुँचने से शासन को भी इस बात की जानकारी प्राप्त हुई। वहीं इसके सामने दूसरे शिखर पर स्थित सूर्यदेव की प्रतिमा भी पिछले 15 वर्षों से गायब हैं। ज्ञात हो क़ि यह धूर नक्सल क्षेत्र हैं। यह भी संभव हैं क़ि हिंदुओं के आस्थाओं का खिलवाड़ करने की नियत के साथ इस घटना को अंजाम दिया गया हो। देखने वाली बात यह भी हैं कि एक छोटे से मस्ज़िद से लाउडस्पीकर हटाने को लेकर बवाल मचाने वाली मीडिया आज इस मसले पर चुप्पी साधे हुये बैठी हैं।

ऐतिहासिक महत्त्व : पुरतत्वेत्ताओं और खोजकर्ताओं के मुताबिक इस तरह की कोई भी मूर्ति पुरे बस्तर क्षेत्र में नहीं हैं। इस मूर्ति को संभवतः बस्तर के छिंदक नागवंशी राजाओं ने 10-11 शताब्दी में स्थापित करवाया था। संभवतः साम्राज्य और जनता की रक्षा के लिये भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की गयी थी।

पौराणिक महत्त्व : आमजनों और पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम और श्रीगणेश के बीच द्वन्द युद्ध इसी क्षेत्र में हुआ था। युद्ध में भगवान गणेश के एक दाँत को परशुराम जी ने अपने फरसे से काट दिया था, फलस्वरूप श्रीगणेश एकदंत कहलाये। पहाड़ी के नीचे का ग्रामीण क्षेत्र का नाम इसी पर ‘फरसपाल’ गाँव हैं। बैलाडीला की पहडियों सहित पूरा बस्तर संभाग नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं। इस वजह से इस क्षेत्र में लोगों की आवाजाही की मात्रा सीमित हैं। शासन-प्रशासन ने भी इस क्षेत्र के मार्गों को सुगम नहीं बनाया हैं।

आज हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर किसी विशेष संप्रदाय के धर्मस्थल में चलने वाली लाउडस्पीकर को बंद कराना सांप्रदायिक माना जाता हैं लेकिन बहुसंख्य समाज के आराध्य के प्रतिमा की सुरक्षा के लिये कोई इंतजाम नहीं हैं। दरअसल यह एक धीमा ज़हर हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी समाज में डाला जा रहा हैं। हम अपनी सभ्यताओं-परम्पराओं के लिये लड़ना भूल गये हैं। हमारे आराध्य की एक ऐसी प्रतिमा जिसपर पुरे बहुसंख्य समाज की आस्था हैं, जिसपर उस जगह के ग्रामीण अपना पूरा विश्वास रखते हैं उसका इस तरह खंडित होना दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

मीडिया और राजनेताओं से उम्मीद मात्र एक भ्रम हैं। क्योंकि इन्हें सिर्फ बुरहान वानी, भंसाली, शाहरुख़, सलमान और दादरी जैसों में ही टीआरपी दिखती हैं, और ये टीआरपी से उठकर काम भी नहीं करना चाहते। राजनेता भी सिर्फ वादों और जुमलों के लिये हैं। गांधी-नेहरू की फ़ोटो जैसी बातों पर भी ये मीडिया और राजनेताओं का गिरोह हो-हल्ला मचाता हैं लेकिन इतनी बड़ी घटना के बाद भी चुप्पी साध लेता हैं।

अब समय हैं क़ि हम आम जन एकजुट होकर आगे आकर अपने धर्मस्थलों को बचाने का प्रयास करे, आखिर दुनिया में सबसे ज्यादा सांस्कृतिक दंश हमने ही झेला हैं।

sources:

https://m.bhaskar.com/news/CHH-OTH-MAT-latest-bastar-news-021003-1878224-NOR.html

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