प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के विमुद्रीकरण की घोषणा करने के चंद मिनटों बाद ही देश में क्रांति की लहर उमड़ पड़ी थी| एक ओर ये एक ऐसी क्रांति थी जिसने काला कारोबार कर अवैध उगाही करने वालो पर एक तरफा कोड़ो की बरसात कर दी थी| दूसरी ओर यह क्रांति उन राष्ट्रसमर्थकों के लिए थी जो हर प्रहर में देश के उज्जवल भविष्य के लिए निरंतरता चाहते थे| इस महासमर में कुछ लोग ऐसे भी थे जो धन सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के समाधान के लिए तन-मन-धन से समर्पित होकर जनसेवा कर रहे थे| परन्तु देश का यह दुर्भाग्य है कि विमुद्रीकरण के इस दौर में कुछ लोग ऐसे भी है जो निष्काम भाव से देशविरोधी एवं देश के विकास में बाधक हर चीजों में बढ़-चढ़ कर अपना योगदान देने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखते है| उन्हें हम संसद के “विपक्ष” के तौर पर भी जानते हैं|
विपक्ष बहुत सी पार्टियों का एक बेमिसाल मिश्रण हैं| जिसमे एक तरफ घोटालों में शामिल कांग्रेस इस विपक्ष तालिका में सबसे शीर्ष पायदान पर है|
दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी आदि हैं जो कि खनन माफिआओं, अवैध कब्जा करने वालों, अथाह गुंडागर्दी करने वालों, शारदा घोटालों, नोटों की माला पहनने वालों की और फर्जीवाड़े की मसीहा रहीं है| इस मिश्रण में एक ही बात की समानता थी की जैसे ही इसे विमुद्रीकरण के घोल के साथ मिलाया गया, धधकती रासायनिक अभिक्रिया के साथ इसमें विस्फोट हो गया| इस अभिक्रिया के बाद से ही यह पूरा मिश्रण इस विमुद्रीकरण का पुरजोर विरोध कर रहा है|
इसके विपरीत देश में बैंकों की लाइनों में खड़ा हुआ आम आदमी, गाँवों में रह रहा किसान, अस्पतालों में अपने बीमार परिवारजनों के लिए खड़ा हुआ इंसान, मेहनत कर दो वक्त की रोटी कमाने वाला मजदूर, नगदी की इतनी गंभीर समस्याओं से जूझने के बावजूद भी देशहित में लिए गए विमुद्रीकरण के फैसले के साथ अपनी आवाज बुलंद किये हुए है| फिर भी देशवासियों की ऐसी कौन सी नब्ज है जो विपक्ष महसूस नहीं कर पा रहा है|
चलिए कुछ गंभीर तथ्यों का विश्लेषण करते हैं:-
१. अतिगंभीर घोटालों में शामिल रहा विपक्ष :- पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कई मंत्रियों का नाम देश के नामचीन घोटालों में शामिल रहा है| जिसके बदले देश की अर्थव्यवस्था में शामिल काली कमाई का एक बड़ा हिस्सा पूर्ववर्ती सरकार से जुड़े लोगों के पास था| जिसका आदान प्रदान अघोषित संपत्ति के रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था में किया जा रहा था| विमुद्रीकरण के बाद सबसे ज्यादा झटका इन्हीं लोगों को लगा है| इसलिए सबसे पहले कांग्रेस ने नेतृत्व कर इस विमुद्रीकरण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया|
२. छोटे दलों को एक मंच पर लाने का प्रयास :- उत्तर प्रदेश की दो बड़े राजनैतिक दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का तो विमुद्रीकरण के खिलाफ जाना लगभग निश्चित ही था| वर्तमान समाजवादी सरकार के बहुत से मंत्री अवैध खनन एवं उगाही में लिप्त रहें हैं और बहुजन समाज पार्टी की स्थिति तो सर्वविदित है कि सुश्री नोटों की माला पहनने के साथ साथ टिकट वितरण में भी अतिरिक्त रुपयों की मांग करती रहती हैं| दोनों पार्टियों में समान विशेषता यह है कि दोनों इस काली कमाई का उपयोग चुनावों में करते हैं| जिससे लाखों वोटरों को खरीदकर, अंतिम समय में उनका रुख अपनी ओर मोड़ा जा सके| बची खुची कसर ममता जी पूरी कर देती हैं जिनके समय में शारदा घोटाला हुआ और चंद समय में ही लोगों ने अपने पूरे जीवन की गाढ़ी कमाई गंवा दी| अब उस घोटाले के पैसे का न तो कोई लिखित हिसाब है और ना ही कोई जानकारी| ऐसे समय में विमुद्रीकरण की घोषणा ने इन्हें सँभलने का भी समय नहीं दिया और इनके काली कमाई वाले नोट “चिट-फण्ड” वाले शब्द में प्रयुक्त सिर्फ चिट की तरह ही रह गए| बाकी ममता जी की गाढ़ी काली कमाई जाने के बाद के गुस्से की ज्वाला से तो मेरे घर का टीवी तक गरम हो जाता है कभी-कभी|
कांग्रेस ने इन दलों की आग को भांपकर घी डालने का काम कार रही है और एक मंच का नारा देकर साथ लाने का प्रयास कर रही है जिससे इन मुद्दों पर भविष्य में गठजोड़ के रास्तों पर विचार किया जा सके|
३. सर्वज्ञानी एवं ईमानदारी की प्रतिमूर्ति अरविन्द केजरीवाल जी का विपक्ष को समर्थन:- एक समय में देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने वाले अरविन्द जी आज निःसंकोच विपक्ष के साथ खड़े हैं| कारण यह नहीं की विमुद्रीकरण के नुस्खा कारगर नहीं है अपितु परेशानी अप्रत्यक्ष रूप से अपनी पार्टी के लिए आ रहे चंदे के बंद हो जाने की वजह से है| दूसरा सबसे प्रमुख कारण है कि सुर्ख़ियों में रहने के लिए प्रधानमंत्री जी के हर वक्तव्य का विरोध कर उनपर दोषारोपण करना उनकी आम जिंदगी के व्यायाम का एक हिस्सा बन चुका है|
विमुद्रीकरण के बाद केजरीवाल जी को स्वयं दिल्ली के कई बैंकों की लाइन में लगे लोगों से विरोध का सामना करना पड़ा है| ऐसे समय में जो मुख्यमंत्री अपने राज्य की नब्ज नहीं टटोल पा रहा, वो देश की नब्ज क्या टटोलेगा|
सत्य तो यह है कि जिसके स्वयं की काली कमाई वाली अकूत संपत्ति पर बट्टा लग गया हो उसके पास देशवासियों की नब्ज टटोलने का समय ही नहीं है| इस काली कमाई वाली आँखों के सामने अचानक से प्रकाशपुंज सामने रखकर प्रधानमन्त्री जी ने सभी की आंखे चौंधिया दी हैं| इस विमुद्रीकरण के कुछ अपने दूरगामी परिणाम भी होंगे :-
१. ऑनलाइन लेन-देन को बढ़ावा मिलेगा :- देश में ज्यादातर लेन-देन नगद में होता है जिसका लिखित रूप से कोई भी हिसाब सरकार के पास नहीं रहता है| विमुद्रीकरण के समय में सरकार ऑनलाइन हस्तांतरण पर सख्ती से नजर रख सकेगी और काले कारोबार पर लगाम लग सकेगी साथ ही साथ सारे सरकारी और गैर सरकारी प्रतिष्ठान एवं संस्थान इस नगदी रहित लेन-देन के क्षेत्र में नयी दिशा और सोच के साथ आगे बढ़ेंगे|
२. भारतीय “रुपये कार्ड” का उपयोग बढेगा :- वर्तमान समय में अधिकतम लोग एटीएम कार्ड, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड का बहुतायत मात्रा में उपयोग कर रहें है| इन कार्डों से जुडी डिजिटल पेमेंट प्रोसेसिंग कम्पनियों जैसे वीसा, मैस्ट्रो आदि को ऑनलाइन लेन-देन के व्यापार से सबसे ज्यादा फायदा पहुचता है और सारा पैसा विदेश चला जाता है| ऐसे समय में जबकि देश की सरकार ने स्वदेशी “रुपये कार्ड” लांच कर दिया है| इस रुपये कार्ड द्वारा होने वाले लेनदेन से देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा|
३. राष्ट्रीय भुगतान निगम द्वारा निर्मित यूनिवर्सल पेमेंट इंटरफेस को मिलेगी पहचान:- यह एक एंड्राइड एप है जिसमे देश के २८ बैंकों की सेवाएं एक ही जगह पर उपलब्ध हैं| यह उन लोगों के लिए अत्यंत ही उपयोगी है, जिन्हें एक से ज्यादा बैंक खातों से लेन-देन करना पड़ता है। इसके लिए न आपको अपना बैंक खाता विवरण देना होगा और न ही प्राप्तकर्ता के बैंक का आइएफएससी कोड| कुछ आसान कदमों में आप लाखों का लेन-देन कर सकते हैं वो भी किसी भी बैंक खाते से|
राजनैतिक पार्टियाँ खासकर “विपक्ष” देश की नब्ज और राष्ट्रवादी नस्ल को पहचान पाए या नहीं परन्तु देशवासी अब भली-भांति अंतर करना जान चुके है| लोगों की सोच में है कि “देश बदलने में थोड़ी तकलीफ होगी ही, परन्तु ऐसा नहीं है की देश बदलेगा नहीं| ये सच है कि गरीब इंसान परेशान है लेकिन उससे भी ज्यादा परेशान वो हैं जो अभी अभी गरीब हुयें हैं|” आने वाले समय में कुछ और परिवर्तन की प्रतीक्षा है, आशा करता हूँ कि आगे होने वाले परिवर्तनों के घेरे में सबसे पहले राजनेताओं को स्थान दिया जाएगा जिससे देश की जनता में भी एक सकारात्मक सन्देश जाए कि “कोई भी देश परफेक्ट नहीं होता, उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है|”