राष्ट्रीय कैडेट कोर की अनसुनी कहानी, एक कैडेट की जुबानी

एनसीसी

Image Courtesy: Business Standard

प्रथम दृष्टया आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि प्रति वर्ष देश के चुनिन्दा कैडेट्स जो कि राष्ट्रीय कैडेट कोर(National Cadet Corps) का प्रतिनिधित्व करते हैं, राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होते है|

बात आज से 11 साल पहले, वर्ष 2005 के उन शुरुवाती कैंप के दिनों की है, जब मैं और मेरे साथी, 58 बटालियन, उरई का चकेरी स्थित एनसीसी कैंप में प्रतिनिधित्व कर रहे थे| सुबह की शुरुआत एक सीधी सड़क में जो कि लगभग 750 मीटर होगी, हल्की सी ठण्ड में पीटी परेड से होती थी और तब तक होती थी, जब तक नाश्ते का समय ना हो जाए|
कुछ विश्राम के बाद अगली परेड का समय हो जाता था| जो कि कड़ी धूप में होती थी, कुछ ही समय में पसीने से पूरा शरीर भीग जाता था परन्तु कटीले तारों के उस पार खड़े चमचमाते जेट विमान अक्सर ही व्याकुलता की ठंडक पहुचाते थे| दिन प्रति दिन बस यही सोचा करते कि कब ऐसा मौका मिलेगा कि देश की सुरक्षा में तैनात इन विमानों को नजदीक से स्पर्श कर पायेंगे|

खैर, ये व्याकुलता तब और बढ़ जाती थी जब सीनियर कैडेट्स बगल में एसएलआर रायफल लेकर परेड कर रहे होते थे, तब तक हमने रायफल के बारे में सिर्फ सुना था पर उसके बाद हमने जाना कि यह हथियार क्या होते है और देश की सुरक्षा के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं|

बहरहाल, इस कठिन प्रशिक्षण में आपको खाली हाथ परेड, हथियार के साथ परेड, निशानेबाजी, रहन-सहन के तौर तरीके एवं बुनियादी सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता था| हमारी दैनिक दिनचर्या के प्रतिकूल यह वातावरण, देश के प्रति कुछ कर गुजरने का एक जूनून और जज्बा पैदा करता था और निरंतर करता रहेगा|

एनसीसी का ध्येय वाक्य है “एकता और अनुशासन” | यह वाक्य चरितार्थ हो जाता था, जब हम सभी, जिनमे से कुछ कैडेट्स दूसरे क्षेत्रो से थे, परेड के समय कदम से कदम मिलाकर चलते थे|

जिनसे हम पहले कभी नहीं मिले, जिन्हें हमने पहले कभी नहीं देखा, जिनसे हमने पहले कभी बात नहीं की, उनसे क़दमों का मिलाप एकता की एक मिसाल थी| हम एक समय पर जागते, सोते, खाते-पीते, खेलते, एक दुसरे से सीखते और कमांडर का आदेश मानते थे, ये अनुशासन ही तो था| मुझे अच्छी तरह याद है कि, जब मै परेड के दौरान सावधान की मुद्रा में खड़े होकर भी सामने की ओर ना देखकर नीचे की ओर देख रहा था| एक या दो चेतावनी देने के बाद, ले० कर्नल डीसी रुजे अपनी कुर्सी से उठे और गुस्से में मेरी तरफ पेन उछाल कर बोले, तुम सार्जेंट सूर्य प्रताप सिंह, सामने देखो, ऊपर की ओर| देश का जवान किसी भी कीमत पर अपने कमांडर का हुक्म मानता है, तुम्हे जमीन नहीं आसमान छूना है, इसलिए ऊपर देखो, आसमान की ओर|

उनके वक्तव्य ने मुझमे उर्जा पैदा कर दी, मै सामने की तरफ, ऊपर की ओर देख रहा था जबकि मेरे माथे से पसीने की बूंदे, मेरी आँखों पर गिर रही थी|

अक्सर, कैंप में प्रतिस्पर्धाए आयोजित की जाती थी, जिसमें एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ सी लग जाती थी| कैडेट्स अपने हुनर का प्रदर्शन करते थे, तब जाकर पता चलता था कि हम में से कोई एक शायर भी है, तो कोई गीतकार, कोई अच्छा नृत्य कर लेता है, तो कोई चित्रकारी, कोई अच्छा कमांडर है तो कोई निशानेबाजी में उस्ताद है|

असल में यह प्रतिस्पर्धाए, आपका चारित्रिक विकास तो करती ही है अपितु मस्तिष्क में रचनात्मक विचारों को जाग्रत करने के लिए भी प्रेरित करती हैं| एनसीसी कैंप, कैडेट्स को ऐसा माहौल देते है जिनमे देश के बारे में, भारतीय सेना के बारे में, सर्वांगीण विकास के बारे में, अपने बारे में बहुत कुछ सीखने को मिलता है| मझे लगता है कि देश के हर माता पिता को ऐसे स्वैच्छिक संगठनों में अपने बच्चों को जरूर शामिल करना चाहिए जिससे बच्चों को जानकारी हो सके कि वह स्वयं क्या है| इसलिए और कि बच्चे जान सके और महसूस कर सके कि देश की रक्षा के लिए सीमा पर खड़ा जवान किन कठिन प्रशिक्षणों एवं विपरीत परिस्थितियों से गुजर कर हम सबको चैन की नींद सोने देता है|

अंत में सूर्य अस्त होने के साथ साथ सभी कैडेट्स फ्लैट फूट मार्च के साथ एक गीत “चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा ना कहना, कभी अलविदा ना कहना” गुनगुनाते हुए अपने अपने कमरों की तरफ लौट जाते थे| आज तक तक इस गीत ने हम सब को जोड़े रखा है और आगे भी हम जुड़े रहेंगे| फिलहाल मै कंप्यूटर विज्ञान क्षेत्र में हूँ और गर्व के साथ कह रहा हूँ कि मेरे बहुत से राष्ट्रीय कैडेट कोर के साथी और सीनियर, बचपन से ही तप कर कुंदन बनने के पश्चात आज सैन्य अधिकारी के रूप में तत्परता एवं कर्तव्यनिष्ठा के साथ भारतीय सेना को अपनी उत्कृष्ट सेवाए दे रहे है|
जय हिन्द!!!!

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