हेमंत करकरे, विजय सालस्कर, तुकाराम ओम्बले, मेजर संदीप।
नाम याद है न? इनके अनेकों साथी, बलिदान याद है न?
नहीं? आज की ताऱीख तो ध्यान में होगी ही या वो भी भूल गए?
अगर ध्यान है तो भी एक बार याद करवा देता हूँ।
आज 26-11 है।
आपका तो पता नही पर मेरे रोंगटे इस तारिख को याद करने भर से ही खड़े हो जाते है।
याद है न वो चार दिन? उस बर्बरता के, उस अमानवता के जिसकी परिभाषा ह्यूमन राइट्स के ठेकेदार कतई नही पढ़ेंगे पर हाँ। चंद वोटो की खेती की खातिर उन आतंकियों के समर्थन में ह्यूमन राइट्स की दुहाई देने वाले हजारों मिल जाएंगे।
26-11 सिर्फ़ ताज होटल, CST या मुंबई शहर पर एक हमला नही था; वो एक चोट थी, हिन्दुस्तां की अस्मिता पर। वो एक तमाचा था हर उस इंसान पर जो पडोसी से आतंकवाद पर सहयोग की उम्मीद पाले था। वो एक सवालिया निशान था देश की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी वाली हर उस संस्था पर जो भारत सरकार द्वारा संचालित है। तो सवाल देश की सरकार पर भी उठाना लाज़मी है।।
याद है वो झकझोर देने वाली तसवीरें? याद है न उस आतंकी का चेहरा जो अपने पाकिस्तानी आकाओ के एक इशारे पर हिंदुस्तान की इज़्ज़त से खिलवाड़ को राज़ी हो चला था? वो धुआँ जो ताज होटल के कमरों से निकल रहा था उसी के साथ इस देश की राजनैतिक व्यवस्था के सुरक्षा वाले दावे धू धू कर राख हुए जा रहे थे। याद है न?
पर साहब क्या ही फ़र्क पड़ता है अब? ये सब तो सेना का, पुलिस का और सैनिकों का काम है, नही? आतंकवादियों से निपटना उनकी ज़िम्मेदारी है, आतताइयों को निष्फल करना उनका काम है, हमें क्या? हम तो कामकाजी ठहरे, अपने काम से काम रखने वाले। न हमे राजनीती से कोई मतलब न सेना से। किसी भी घटना का बुरा परिणाम हम पर क्यों पड़े और क्यों हमारे बच्चो की परवरिश और पैदाइश पर विपरीत असर डाले?
माफ़ कीजिएगा। मसला अगर राजनैतिक होता, आप किनारा कर निकल सकते थे। पर अगर कुछ भी देशहित के ख़िलाफ़ हो और आप आँखें मूँद कर बैठे रहे तो आपको कोई हक नही सवाल पूछने का।
ये मत भूलिए की आप भी इसी देश में रहते है। अगर ये सब यूँ ही ज़ारी रहा तो आज नही तो कल पर इसका विपरीत परिणाम आप पर भी अवश्य पड़ेगा।।
अरे अरे! घबराइए नही। AK-47 लेकर सियाचिन की बर्फीली पहाड़ियों में जाने की दरख़्वास्त आपसे नही कर रहा हूँ। न ही आपको रेगिस्तान की तपती धूप में बदन काला करने की हिदायत दी जा रही है। मैं समझता हूँ, हम सब थोड़े आराम पसंद है और धूप में टैनिंग (tanning) का खतरा भी तो रहता है। सब्र मत खोइये क्योंकि न ही आपको हिन्द महासागर में गोते लगाने है और न ही फाइटर जेट से दुश्मन पर बम्ब गिराने है। इन सबके लिए भारत माँ के वीर सपूत 24*7 अपना फ़र्ज़ ऐडा कर रहे है।
पर हाँ। इसी कड़ी में खुद से कुछ सवाल जरूर पूछिये।
हिन्द के भीतरी शत्रुओं को पहचानिए।चूँकि देश के बाहरी दुश्मन आज की ताऱीख में हमारी ओर आँख उठा कर देखने की भी औकात नही रखते, इसलिए देश के भीतरी शत्रुओं को औकात दिखाना आपकी जीवनशैली का एक अंग होना चाहिए। कुछ विपरीत मानसिकता के लोग 26-11 सरीखे प्रयास दोहराने के प्रयास में घात लगा कर बैठे है।।
अब कुछ लोग सबूत माँगेगे! खैर उनकी गलती नही है। राष्ट्रवादी सोच पर सवाल उठाना कुछ बुद्धिजीवी राजनैतिज्ञों का धर्म हो चला है। सबूत न देने की जरुरत है और न ही दूंगा पर हाँ। आपकी तस्सली के लिए कुछ वाक्य याद करवाना चाहूँगा।
इन्हीं 26-11 हमलों का मास्टरमाइंड आतंकी सरंगना देश के तत्कालीन गृहमंत्री के लिए जहाँ श्रीमान होगया था वही कुछ मंझे हुए लोग इसे भगवा आतंकवाद का रंग देने में संलिप्त थे। अब उनकी पहचान और परिभाषा आपको करनी है।
पहचान कर लीजिए देश के हर उस गद्दार की और कर दीजिए इनका सामाजिक बहिष्कार, भेज दीजिये इन्हें वनवास में जिसके ये हक़दार है फिर भले ही वो राजनीती का क्षेत्र हो या कला, खेल हो खुफ़िया विभाग| इस सामाजिक दीमक को दूर करना हम सभी की न केवल प्राथमिकता होनी चाहिए परंतु नैतिक ज़िम्मेदारी भी।।
जिस पीढ़ी की परवरिश का खौफ़ आपको विचारों से अपंग बना रहा है, उसी सन्तति को बताइये की ये देश किन वीर जवानों का कर्जदार है। आप नही चाहते तो मत बताइये की कैसे कुल 11 आतंकवादी पाकिस्तान में शिक्षा लेकर समूचे हिन्दुतान को आइना दिखा जाता है। पर ये ज़रूर बताइये की इसके असली ज़िम्मेदात कौन है? नही तो याद रखिए कि कल देश जल था, शायद कल आपका ही घर जल जाय।।
26-11 के शहीदों को शत शत नमन और उनको परिवारों को तहे दिल से सलाम के साथ,
जय हिंद।।