कुछ एकाध दशक पुरानी बात है जब भाजपा वाले गर्व से भर कर गलियों में चिल्लाते हुए दिखते थे, “बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का”, “कल्याण सिंह कल्याण करो, मंदिर का निर्माण करो”, इत्यादि। जब भाजपा सरकार में आ गयी, तो इनके इन्क्विलाबी नारे थोड़े ठन्डे पड गए। लेकिन फिर भी, “मंदिर वहीं बनाएंगे” की धुन भाजपाइयों ने नहीं छोड़ी।
लेकिन अब माहौल बदला बदला सा है, उत्तर प्रदेश में सरकार बनाना अति-आवश्यक है, लेकिन पुराने ढर्रे पर चलना भी कठिन है, इसीलिए भगवान् श्री राम का स्थान विकास ने ले लिया है। अब भाजपाई कहते हैं, मंदिर वहीँ बनाएंगे जब राज्य सभा में बहुमत पाएंगे। खैर, भाजपा के लिए राम मंदिर का मुद्दा गले की हड्डी बन गया है,ना निगला जा रहा है, ना उगला। राम मंदिर के मसले को भाजपा ना तो छोड़ सकती है, ना इसका निपटारा राम मंदिर का निर्माण कर के कर सकती है। इस के ऊपर उत्तर प्रदेश में चुनाव। एक तरह से भाजपा बहुत विकट परिस्थिति से जूझ रही है।
इसी कारण, संभवतः, केंद्रीय पर्यटन मंत्री, श्री महेश शर्मा कुछ दिन पूर्व अयोध्या में दिखाई दिए। उनकी यात्रा का पर्याय था रामायण-संग्रहालय के लिए चुने गए स्थल का निरिक्षण करना। लेकिन रामायण-संग्रहालय तो कभी भी बन सकता है। इस समय जो चुनावी अंगीठी पर उत्तर प्रदेश पड़ा है, क्या रामायण-संग्रहालय के लिए स्थल-निरिक्षण के लिए, माननीय महेश शर्मा को श्रेष्ठ समय लगा? दरअसल, सत्य यह है,की भाजपा समझ नहीं पा रही, कि राम मंदिर को उत्तर प्रदेश चुनावों में फिर से मुख्य मुद्दा कैसे बनाया जाए। कदाचित इसी कारण, महेश शर्मा, जो मोदीजी की सरकार एक कनिष्ठ मंत्री हैं,उन्हें इस मुद्दे पर मोर्चा खोलने को कहा गया।
कुछ दिन पूर्व ही,मोदीजी ने रामलीला में जय श्री राम का उद्घोष कर एक जघन्य अपराध किया था, अब महेशजी के दौरे से, पूरा विपक्ष और भारत के लिबरल व्यक्तिमत्व में हड़कंप मच गया है। एक बार फिर, कम्युनल शब्द का जम कर उपयोग हो रहा है। मुसलमानों को हिन्दू साम्प्रदायिकता का भय दिखा कर, उनका वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने की योजना बन रही है।
खैर, सत्य तो यह है, की यह रामायण-संग्रहालय, एक प्रकार की राजनैतिक लॉलीपॉप मात्र है. इससे भाजपा यह दर्शाना चाहती है की राम मंदिर का मुद्दा उसने त्यागा नहीं है. यदि भाजपा, राम मंदिर नहीं, तो कम-से-कम, अयोध्या में एक रामायण-संग्रहालय तो बना ही सकती है। संभवतः, भाजपा के दिग्गजों का यह सोचना है, कि ऐसा करने से वह अपने-कोर हिन्दू वोटरों की घेराबंदी करने में सफल हो जायेंगे। ऐसा करने से, भाजपा मुस्लिम वोटरों की घेराबंदी से होने वाली हानि को संभाल लेगी।
सच्चाई यह है, की ऐसा कुछ नही होगा। हिन्दू वोटरों का वोट बैंक बनाने में भाजपा बुरी तरह असफल रही है। 90 के शुरुआत में जो थोड़ा बहुत हिन्दू वोट बैंक बना था, वह इसीलिए बना था, क्योंकि लोगों को ऐसा लगा था, कि राम मंदिर का बनना तय है और राम जन्मभूमि आंदोलन बेहद सफल रहा था। यदि भाजपा, पुनः एक बार, हिन्दू वोटरों का वोट बैंक बनाना चाहती है, तो या तो वह राम मंदिर का निर्माण करवा दे, अन्यथा, अयोध्या जैसे पावन नगर में, बिजली, पानी, सड़क और अन्य आधारिक संरचना का विकास करवा दे। रामायण-संग्रहालय की बात ऐसे समय करना जब चुनावी आचार संहिता लागू होने वाली है, बहुत ही बेतुकी सी बात है।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में, बिहार की तरह, भाजपा दो नावों में पैर रख कर, अपना चुनावी अभियान चलाने की सोच रही है, तो यह पुरानी भूलों से सीख ना लेने का द्योतक है। बिहार की तरह ही भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित ना कर, अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। वह तो भला हो ईश्वर का, कि सपा, बसपा और कांग्रेस की हालत भी उत्तर प्रदेश में ख़राब है। खैर, मुख्यमंत्री की घोषणा करें या ना करें,भाजपा इतना जान ले,की राम मन्दिर के मुद्दे पर, लोगों को बहकाना उसे छोड़ देना चाहिए।