अखिलेश यादव बनायेंगे नयी पार्टी?

Akhilesh yadav, kairana, ajit singh

Image Courtesy: DeccanChronicle

एक कहावत है कि “एक म्यान में, दो तलवारे नहीं रह सकती हैं”| वर्तमान समय में अगर उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के राजनैतिक परिस्थितियों का आंकलन करें तो पायेंगे कि किस प्रकार से यादव परिवार के दो सदस्य अपने अपने वजूद के लिए लड़ रहे हैं| एक ओर हैं युवा अखिलेश यादव जिनके नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने स्वर्णिम इतिहास लिखकर उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनायीं और दूसरी ओर हैं शिवपाल यादव जिनका संगठनात्मक योगदान एवं कर्मठता पार्टी के संस्थापना वर्ष से रहा है|

विगत दिनों में लगातार विभिन्न समाचारों के माध्यम से आप इन तकरारों को पढ़ रहे होंगे कि किस प्रकार से अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर रातों रात शिवपाल यादव की ताजपोशी कर दी गयी| जिसके तुरंत बाद की जवाबी कार्यवाही में अखिलेश ने शिवपाल यादव से जुड़े सारे मंत्रालय छीन लिए| इसके बाद तो दोनों ओर से खिंची तलवारों को रोकने के लिए स्वयं नेताजी मुलायम सिंह यादव को बीच-बचाव के लिए आना पड़ा| मामले को तूल पकड़ता देख नेताजी के आदेश के बाद शिवपाल यादव को उनसे जुड़े सारे मंत्रालय तो मिल गए परन्तु बदले की आग अब भी धधक रही थी| इससे अलग जब अखिलेश ने मांग की कि उन्हें टिकट बंटवारे की जिम्मेदारी दी जाए तब भी उनके परामर्श के विरुद्ध उनके बहुत से करीबियों के टिकट काट दिए गए|

इसी बीच सरकार में कैबिनेट मंत्री और अखिलेश के करीबी माने जाने वाले राजेंद्र चौधरी ने रविवार को एक प्रेस नोट जारी किया| जिसके बाद से यह चर्चा जोरों पर है कि समाजवादी पार्टी के दो मीडिया प्रकोष्ठ कार्यरत हैं जिनमे से एक मुख्यमंत्री कार्यालय के लिए और दूसरा समाजवादी पार्टी के लिए है| क्यूंकि चौधरी द्वारा जारी किया गया प्रेस नोट समाजवादी पार्टी की आईडी से नहीं अपितु व्यक्तिगत मेल से जारी किया गया था|

अब दिमाग को घुमाने वाला प्रश्न यह है कि क्या अखिलेश यादव, समाजवादी पार्टी से इतर अपना नया संगठन खड़ा करने की तैयारी में है?

अगर राजनैतिक जमीन की बात करें तो समाजवादी पार्टी के अधिकतम युवाओं की पहली पसंद बेशक अखिलेश यादव ही हैं और साथ ही साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते वे किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं| जब हम किसी राजनैतिक संगठन को खड़ा करते हैं तो तीन सबसे महतवपूर्ण बातें सामने आती हैं- पहला राजनैतिक विश्लेषण, दूसरा संगठनात्मक ढांचा तथा तीसरा जनसमर्थन| अगर हम समाजवादी पार्टी का राजनैतिक विश्लेषण करें तो इस अंतर्कलह के खुल जाने की वजह से संगठन अपना जमीनी वजूद खो चुका है| संगठनात्मक ढांचे की बात करें तो पार्टी में दो फाड़ हो जाने के बाद से कार्यकर्ता गुटों में कार्य कर रहें हैं| जनसमर्थन का विषय सिर्फ अखिलेश और शिवपाल के समर्थकों तक सीमित रह गया है|

ऐसे समय में अगर अखिलेश नया संगठन खड़ा करने की दिशा में कार्य कर रहें हैं तो निश्चित ही सहानूभूति के नाम पर वे सभी दलों में सियासी हलचल पैदा कर सकते हैं| चुनावों के मद्देनजर इस सियासी उठापटक के दौर में जिस प्रकार से अन्य पार्टियों में नेताओं की भगदड़ मची है, नए संगठन के रूप में शीघ्र राजनैतिक लाभ को देखते हुए कई नेता अखिलेश का दामन भी थाम सकते हैं| चुनावों के परिणामी भविष्य का गणित लगाना तो अभी दूर की कौड़ी की बात है परन्तु समाजवादी पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर बैठे चाचा जी के लिए यह बहुत ही जोरों का झटका होगा| अखिलेश यादव समर्थकों द्वारा पहले ही दिए जा रहे संकेतों से साबित हो रहा है कि पर्दे की पीछे से कोई बहुत बड़ा दाँव चलने की कोशिश की जा रही है जो कि नए संगठन के रूप में भी हो सकता है| जिससे आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में चाचा जी के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की चूलें हिल जायेंगी|

इसके उलट आज ही यह भी सुनने में आया है कि समाजवादी पार्टी अखिलेश को चेहरा मानकर आगामी विधानसभा चुनावों में उतरेगी परन्तु जिस प्रकार से अखिलेश के पंख कतरे गए हैं क्या वे स्वयं मुख्यमंत्री चेहरा बनकर इस चक्रव्यूह में फंसने के लिए तैयार हैं या फिर आत्मसम्मान की लडाई के लिए एक व्यापक आन्दोलन के सहारे तप कर कुंदन बनने की तैयारी में हैं|

खैर, यह फैसला अखिलेश यादव के ऊपर छोड़ देना चाहिए कि वे क्या करेंगे और क्या नहीं परन्तु इस प्रकार की घटनाएं दर्शाती है कि जब बारम्बार तरीके से पारिवारिक सदस्य ही संगठन के नेतृत्व को सँभालते रहें हों और अन्य किसी व्यक्ति को संगठन के शीर्ष नेतृत्व तक पहुचने का मौका ना दिया गया हो| ऐसे समय में जब पारिवारिक क्लेश का दौर आता है तो संगठन का विघटन स्वतः रूप से ही प्रारंभ हो जाता है जिसे कितना भी प्रभावशाली और कर्मठ कार्यकर्ता क्यूँ ना हो, उस संगठनात्मक विघटन पर अंकुश लगा पाने की दिशा में निश्चित रूप से नाकामयाब ही सिद्ध होगा|

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