नमस्कार कन्हैय्या बाबु, मैं अतुल मिश्रा बोल रहा हूँ. कन्हैय्या बाबु तुमको बहुत बहुत धन्यवाद. तुम भी बिहारी हो हम भी बिहारी हैं. तुम हालाकि क्रन्तिकारी हो, और हम जैसे लोगों को भक्त, संघी, चड्डी इत्यादि नाना प्रकार के नाम से बुलाया जाता है.
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तुम उन सबको धन्यवाद, शुक्रिया बोले जो लोग जेएनयु के साथ खड़े रहे. तो चलो ज़रा एक बार उनका मुआयना किया जाए की कौन थे? सबसे आगे थे युवराज राहुल गांधी जो डेमोक्रेसी के भेष में राजतन्त्र चला रहे हैं. हालाकि पिछले तीन चार सालों धकापेल लपेटे गए हैं अलग अलग राज्यों में. दुसरे नंबर के क्रांतिकारी थे क्रन्तिमस्तकमणि श्रीमान अरविन्द केजरीवाल जी. क्यूंकि दिल्ली में अब सर्वत्र खुशहाली का माहौल है, महिलाये सुरक्षित हैं, शीला दीक्षित जेल में हैं, एमसीडी खुश है, वाईफाई और सीसीटीवी से पूरे दिल्ली में रौनक है, नए स्कूल कालेज बन चुके हैं, सशक्त लोकपाल पारित हो चूका है…कुल मिला के मनिफेस्तो के सारे पॉइंट्स पूरे किये जा चुके हैं इसलिए वो अब बाकी देश सुधार रहे हैं. बिहार में लालू को गले लगाकर करप्शन भगाए, फिर वेमुला की मौत पर सियासत करने हैदराबाद गए, आज कल जेएनयु के चक्कर लगा रहे हैं काहे की फुटेज खाने की असली जगह वही है. फिर तीसरे नंबर पर एचओडी ऑफ़ वामपंथ श्री येचुरी जी हैं जो बंगाल हार चुके है, केरला हारने वाले हैं और आखिरी किले के ध्वस्त होने की तिलमिलाहट बर्धाष्ट नहीं कर पा रहे हैं. इन सब का कोई पर्सनल गेन नहीं है मेरे ख्याल से, बड़े शुद्ध मन से आप का सपोर्ट कर रहे हैं तो आपका धन्यवाद भी बनता है
कन्हैय्या बाबु, तुम ने कहा की तुम लोकतान्त्रिक हो, और संविधान पे भरोसा रखते हो. मतलब जे है से की शुरुआते झूठ से किये?
तो ये बताइए की क्या अफज़ल गुरु की फांसी असंवैधानिक थी? क्या उसे न्यायिक प्रक्रिया से वंचित रखा गया? क्या राष्ट्रपति असंवैधानिक पद है या फिर उनका फैसला न्यायसंगत नहीं है? तुम्हे संविधान में कोई भरोसा नहीं है कन्हैय्या बाबु क्यूंकि वामपंथी क्रान्ति का रेज़ अगेंस्ट थे सिस्टम आपके बहुत अन्दर तक घर किया हुआ है. अच्छा तुमने एक और बात कही की जेएनयु का विद्रोह स्पौंटेनीयस था. हम आईटी वाले हैं. सामान्यतः एक सॉफ्टवेर बनाने में कई महीने लग जाते हैं, लेकिन कभी महीनो का काम आवश्यकता होने पर हम हफ्तों कभी कभी तो कुछ दिनों में भी कर देते हैं. ये भी स्पौंटेनीयस होता हैं, पूछो क्यूँ? क्यूंकि आदत है? तैय्यारी प्लानिंग उस चीज़ की करते हैं जिसका अनुभव कम है अथवा नहीं हैं. अब जेनयू वाले तो कुख्यात है बे सर पैर की क्रान्ति के के लिए. अब इसको स्पौंटेनीयटी कहें या अभ्यास कहें, एक ही बात है.
अच्छा एक और बात कही तुमने, की हम भारतीय भूल बड़ी जल्दी जाते हैं. ठीक कहा, अब क्रान्ति शुरू हुई थी भारत के टुकड़े कराने के लिए, लेकिन उसकी तो अब कोई बात ही नहीं करता, ना तुम करते हो, ना केजरीवाल, ना राहुल गाँधी, ना येचुरी और ना ही मीडिया. भूल गए होंगे शायद. फिर कहते हो भारत से नहीं भारत में आजादी चाहते हैं. वाह, तुम भी भूल गए. कश्मीर की आजादी के सपने पुलिस के डंडे के साथ छूमंतर हो गए, खैर ठीक ही हुआ क्यूंकि मामला आर्मी तक पहुंचता तो तकलीफ भी होती और दर्द भी.
अच्छा फिर तुमने अपने हेविली सब्सीडाइज्ड एजुकेशन को भी खूब जस्टिफाई किया, की जो कमाया है वही खा रहे हो? पहली बात तो ये की कुछ कमाया नहीं. और खाया दबा के, वो भी दस दस पंद्रह पंद्रह साल. और फीस में छूट पढाई के ली दी गयी थी क्रान्ति के लिए नहीं, ये बात समझना बहुत ज़रूरी है काहे की ना तो तुम अकेले ग़रीब हो ना ही अकेले होनहार. हमारे ही बिहार का कोई गरीब पीएचडी करने के लिए जेएनयु का मुह ताक रहा होगा, लेकिन एडमिशन कैसे मिले भैय्या यहाँ तो क्रांति चल रही है.
कन्हैय्या, तुमने कहां की जेएनयु पर हमला नियोजित था. बिलकुल ठीक कहा. हमारा एक संविधान है, आईपीसी है, उसमे धाराएं है, अलग अलग प्रावधान हैं. चोरी के लिए अलग, हत्या के लिए अलग, देशद्रोह के लिए अलग. ये सारा पूर्वनियोजन हमारे महान लॉमेकर्स कर के गए हैं, आपके अनन्य बाबा साहेब भी थे उनमे. अब जब कोई बुरा काम करेगा तो पकड़ा जाएगा, वाजिब सजा पायेगा, ये सब नियोजित भी है और निर्धारित भी. देखिये आप बड़े घर का हवा खा आये उसी प्रणाली के अंतर्गत, अब बेल पर छूट भी गए उसी प्रणाली के अंतर्गत.
अच्छा तुमने सीमा पर मरते हुए जवान के लिए कहा की तुम्हारा भाई है क्या? पहली बात तो ये संवेदनहीन टिपण्णी थी और दूसरी बात, जिस पार्टी पे कीचड उछाल रहे हो एक बार उसको बारीकी से स्टडी करो, ना जाने कितने वीके सिंह, कैप्टेन अभिमन्यु और राज्यवर्धन सिंह राठौर निकल आयेंगे. और एक बार अपने लाल सलाम खेमे को देखना, नक्सली कितने हैं और जवान कितने. लेकिन जानना चाहते हो तो सुनो, हमारे दादा परदादा भी किसान थे और हमरे भाई बंधू सेना में भी हैं. और तुमने कहा की एक्सआर्मी मेन का रिमोट कंट्रोल नागपुर में है. दुनिया में दो ही अनुभव शुद्ध हैं कामरेड, पहला शौर्य जो की तुममे नहीं है और दूसरा सिंगल माल्ट जो खरीदने के लिए कमाना जरूरी है, और उसके लिए कॉलेज से निकलना पड़ेगा. इसलिए आर्मी वालो से तो दूर ही रहो, उनकी सटक गयी तो लाल सलाम की जगह मेजर सलाम, ब्रिगेडियर सलाम निकलेगा.
अब आते हैं मेन मुद्दे पर. तुम्हारी मुख्य मांग थी आज़ादी. गरीबी से, शोषण से, असमानता से, पूँजीवाद से, मनुवाद से, दलितों पर अत्याचार से, आतंकवाद से. बहुत अच्छी मांगे हैं ये, लेकिन एक बुनियादी सवाल है. ये बताओ कन्हैय्या बाबु की गरीबी डेढ़ साल पहले आया?, शोषण डेढ़ साल पहले आया?, असमानता डेढ़ साल पहले आया?, पूँजीवाद डेढ़ साल पहले आया?, मनुवाद डेढ़ साल पहले आया?, दलितों पर अत्याचार डेढ़ साल पहले आया?, आतंकवाद डेढ़ साल पहले आया? हमारे हिसाब से तो काफी टाइम से है ये सब अपने देश में? तो ये चेतना कहा थी अभी तक? मोदी के पीएम बनने का इंतज़ार कर रही थी क्या? और अगर छोटा भीम आ जाता तो? नो शोषण, नो पूँजीवाद, नो दलितों पर अत्याचार इत्यादि.
केजरीवाल को मानते भी हो और सच्चे दिल से फॉलो भी करते हो. केजरीवाल जी को अक्सर कुछ लोग मिल जाते हैं. जैसे की सड़क पे भीख मांगने वाला उनकी बड़ाई करके निकल जाता है. कभी कुछ पत्रकार उन्हें बताते हैं की कैसे पूरी कायनात उनके खिलाफ और मोदी के साथ है. सीनियर ब्युर्योक्रेट्स उन्हें अक्सर अन्दर के सीक्रेट बताते हैं, और पुलिसवाले बताते हैं की कैसे वो इतनी मोहब्बत के बावजूद भी उनके साथ बदसलूकी करने को बाध्य हैं. पता है इन लोगो की विशेषता क्या होती है? ये सब अननोन और अननेम्ड लोग होते हैं ठीक उसी पुलिसवाले की तरह जो तुम्हारा अनन्य मित्र बन गया था. जो लाल सलाम के बारे में पूछ रहा था, अगर वो काल्पनिक ना होकर असली डंडाधारी पुलिस वाला होता और उसे पता चल जाता की झारखण्ड और छतीसगढ़ में जो पुलिस की जीप उड़ाते हैं वो सब लाल सलाम वाले होते हैं तो तुम्हारे तबले सुजा देता. खाली पैंतराबाजी से कुछ नहीं होगा कन्हैय्या बाबु क्यूंकि पैंतराबाजी तो रवीश कुमार की भी नहीं चली थी.
एक जोक अच्छा मारे तुम कन्हैय्या. की जेएनयु वाले भारी टर्मिनोलॉजी में बोलते हैं, सोलह आने सही. इंसान दो केस में क्लिस्ट भाषा का प्रयोग करता है. एक तो तब जब बहुत ज्यादा जानता है और दूसरा तब जब नॉलेज थोड़ी कम हो. अब तुमलोग जेएनयु से बाहर तो निकले नहीं. थोडा बहुत लाल सलाम साहित्य पढ़ लिए, थोडा झोलाछाप कामरेडो का भाषण सुन लिए. इससे भाषा हो गयी भारी, ज्ञान हो गया हल्का, और आवाज़ हो गयी तेज़.
अच्छा लगा ये देख के अपने आप को हिन्दू बताने में थोडा सकपका गए. तकरीबन दस सेकंड का पॉज़ था. और वो ठीक भी था. जेएनयु एक एलिट संस्था है, और हिन्दू धर्मं वहां आउट ऑफ़ वोग है. क्यूंकि सनातन धर्म के गूढ़ रहस्य समझने लायक ना तो वहां किसी में विवेक है ना ही मंशा. तुम हिन्दू नास्तिक हो, हिन्दू लगाना अनिवार्य नहीं है क्यूंकि हिन्दू धर्मं ही इतना परिपक्व है जो किसी को नास्तिक बनने की आज़ादी देता है. यहाँ कोड़े और पत्थर नहीं पड़ते. अच्छा नास्तिक से याद आया, वो इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह कौन कर रहा था. तुम तो खैर नहीं थे. तुम करने वालो की टीम में नहीं, बल्कि करवाने वालो की टीम में थे. तुम्हारी नास्तिकता बड़ी सेलेक्टिव है. माशा अल्लाह.
अब आते हैं प्रधान मंत्री पर. वैसे माननीय प्रधानमंत्री बोलना जरूरी नहीं है. तुम्हारे परम पूज्य आराध्य देव श्री केजरीवाल जी तो उन्हें कोवार्ड और सायकोपैथ भी कह चुके हैं. मोदी जी ना बुरा माने ना रियेक्ट किये, बस इगनोर कर गए. अच्छा तुमने कहा की मोदी ख्रुसेव की बात कर रहे थे, और स्टॅलिन की बात कर रहे थे तो तुम्हारा मन किया की सूट पकड़ के बोलो की महाशय ज़रा हिटलर की भी बात कर लो. वाह वाह वाह, झोलाछाप कामरेड, अति उत्तम विचार. एक तो हिटलर कहते हो, और सूट भी पकड़ने की इच्छा रखते हो. अगर मोदी तानाशाह होते तो सूट तो छोडो बूट छूने की कल्पना भी नहीं कर पाते.
जुमले से परेशानी है पर मन की बात, माँ की बात बोलते हो. समानता के लिए लड़ते हो पर खुश इसलिए हो की जेएनयु में आरक्षण मिलता है. ये कहते हो की मोदी को उनहत्तर फीसदी ने नकार दिया. लेकिन डेमोक्रेसी है बालक, या स्वीकारने वालो की संख्या देखते हैं नकारने वालो की नहीं. और मोदी को स्वीकारने वालो की संख्या बहुत ज्यादा है. तुमने कहा की लम्बी लड़ाई है, चलेगी. कोई संदेह नहीं इसमें. निस्संदेह चलेगी. लाल क्रांति एक ऐसी क्रांति है जिसका ना आदि ना मध्य ना अंत. नीला कटोरा आसमान का है, उसके नीचे लाल कटोरा क्रांति से बहे खून का. बहाते रहो, नेतागिरी झाड़ते रहो, हर बात पर ताली बजाने वाले टटपून्जिये समर्थको के बीच घिरे रहो, अपनी गरीबी बेचो, माँ बाप का दर्द बेचो, माइक पे चीखो, जेल जाओ, फिर आओ, फिर ये सारा क्रम फिर से दोहराओ.