रवीश जी – आपका Moral High Ground, Holier than Thou Attitude नकली है, बेमानी है, phoney है

रवीश जी

नमस्कार मैं अतुल मिश्रा बोल रहा हूँ, रविश कुमार जी दरअसल में, मैं ना तो आपके जितना प्रसिद्ध हूँ, ना ही आपके जितना अच्छा बोल सकता हूँ. आपको शायद आज पता चला होगा लेकिन हम जैसे कुछ सोशल मीडिया वालों को बहुत पहले ही पता चल गया था की आपका टीवी बीमार हो गया है. आप सब बीमार है. और ठीक आपकी ही तरह मैं भी अपने आप को डॉक्टर नहीं घोषित कर रहा. लेकिन इतना तो ट्विटर पर बैठा बारह फोल्लोवेर वाला भी कोई व्यक्ति कह सकता है की आप लोग बीमार हैं. आप जिस समाचार को इतनी शिद्दत से बनाते हैं, सजाते हैं, स्पेशल इफेक्ट्स लगाते हैं, इनफौर्मड वर्ग के लिए दरअसल में वो एक मज़ाक है. हमें डिबेट शुरू होने से पहले ही पता होता है आपकी allegiance किसकी ओर है. चाहे रोहित सरदाना चीखे या अभिसार शर्मा, अर्नब गोस्वामी चीखे या राजदीप सरदेसाई…पब्लिक है ये सब जानती है

Download Video (Right Click and Save Link as)

 

आपके ह्युमिलिटी की दात देनी होगी, जबकि आपको भी पता है की आप चोटी के पत्रकारों में आते हैं आपने अपने लिए नंबर दस, या फिर फ़ैल जैसे विशेषणों का प्रयोग किया. दरअसल भारत में ह्युमिलिटी सबसे ज्यादा बिकती है, इसलिए सचिन अपने आपको शीर्ष बल्लेबाज़ नहीं मानते और अमिताभ की माने तो वो एक्टिंग अभी सीख रहे हैं. तो आपने भी वही तर्ज़ पकड़ी लेकिन, पॉपुलिस्ट नब्ज़ पकड़ कर हकीकत को दबाया नहीं जा सकता रवीश जी

आपने कहा एंकर चिल्लाने लगे हैं, धमकाने लगे हैं. रवीश जी गुस्सा दो प्रकार का होता है – प्रकट यानी एग्रेसिव और परोक्ष यानी पैसिव. क्या आपने कभी देखा है की आपने स्वयं के भाषणों में कटाक्ष की मात्र कितनी होती है? बहुत ज्यादा, और इतना कटाक्ष किसी को भी बीमार, बेहद बीमार कर सकता है. तो क्या आपकी पत्रकारिता एग्रेसिव नहीं है, शांत चेहरा, ये निर्धारित नहीं करता की व्यक्ति में गुस्सा है या नहीं. उसकी शैली और विचारधारा निर्धारित करती है, और मैं आपको हिंदी पत्रकारीता के सबसे एग्रेसिव पत्रकारों में से एक मानता हूँ. और ये आज नहीं हुआ, ये हमेशा से है. इसलिए आपका मोरल हाई ग्राउंड, holier than thou attitude नकली है, बेमानी है, phoney है.

आपने जेएनयु का उदहारण दिया की कैसे लोगो ने पहले ही निर्धारित कर लिया की दोषी कौन है जबकि अभी तक विडियो भी सत्यापित नहीं हुआ है. तो आपने कैसे निर्धारित किया की कन्हैय्या निर्दोष है? चलिए आपने नहीं किया मान लेते हैं लेकिन जिस तरह आप उसके ग़रीब परिवार का हवाला देते हैं, ये बताते हैं की वो साम्यवाद के खिलाफ लड़ रहा एक नौजवान है तो आपकी सहानूभूति या फिर कहें तो राजनैतिक पक्षपात साफ़ साफ़ दीखता है. उमर ख़ालिद जिसका विडियो सबसे साफ़, सबसे स्पष्ट है आपको उसकी सत्यता पर भी संदेह है. आपको किसने जज बनाया रवीस जी. बाकी के चैनलों पर प्रहार करने से पहले आपने ये सोचा की आप भी वही कर रहे हैं जो वे. आप भी पूर्वाग्रह से ग्रसित है, जैसे की वे. आपकी भी चहीती पार्टियां हैं, जैसे की उनकी. आपके भी राजनैतिक दृष्टिकोण है, जैसे की उनके. आपकी भी एक विचारधारा है, जैसे की उनकी. आप भी किसी पार्टी या नेता से नफरत करते हैं जैसे की वे. तो आप उनसे अलग कैसे हुए रवीश जी, आपको पत्रकारिता के अँधेरे को दिखलाने का नैतिक अधिकार किसने दिया? हमने तो नहीं दिया. तो बचा आपका चैनल या फिर आप स्वयं.

आपने कहा की सोशल मीडिया पर कुछ लोग दल बना के पत्रकारों पर अभद्र टिप्पणिया करते हैं. आपने कुछ पत्रकारों के नाम भी गिनवाए जो उनके वर्बल डाईरिया का हर रोज़ शिकार बनते हैं. गलत है ये और ये सब बंद होना चाहिए लेकिन एक बार दिल पर हाथ रख कर बोलियेगा रवीश जी, क्या आपकी भड़ास सेलेक्टिव नहीं है? राजदीप और बरखा दत्त पर हुए अटैक्स तो आको याद रहे लेकिन सुधीर चौधरी और अर्नब गोस्वामी पर हुए अटैक्स आप नज़रंदाज़ कर गए. क्या ये पर्शिअलिटी नहीं है. आपको भाजपा के समर्थको का गालीगलोच याद रहा पर शायद आप ट्विटर पर AAP समर्थकों और वामपंथ समर्थकों की गालियाँ भूल गए. शायद आप वह प्रकरण भी भूल गए जिसमे नीम के पत्ते को कड़वा बताया गया था, और हमारे माननीय प्रधानमंत्री को कड़वा की समध्वनि वाला शब्द बताया गया था. आपको वकीलों की गुंडागर्दी याद रही, लेकिन छात्र आन्दोलन के नाम पर हुई अभद्रता याद नहीं रही. आपको बीजेपी के एक नेता की टिपण्णी याद रही लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री के अमृतवचन याद नहीं रहे जब उन्होंने नरेन्द्र मोदी को सरफिरा कहा था, पागल कहा था.

आपको असली हकीकत मैं बयान करता हूँ. आप डरे हुए हैं, आपके फील्ड के बाकी पत्रकारों की तरह. आप सब सोशल मीडिया से डरे हुए हैं. लोगो के इनफार्मेशन के फर्स्ट हैण्ड एक्सेस से डरे हुए हैं. पहले आपके पास आजादी थी, आजादी प्रोपगंडा की, आजादी झूठ बोलने की, आवश्यकतानुसार दिखाने की, आवश्यकतानुसार छुपाने की. लेकिन अब नहीं है, क्यूंकि हम पकड़ लेंगे, आप दादरी दादरी चीखेंगे तो हम मालदा भी याद दिलाएंगे. आप अवार्ड वापसी को सपोर्ट करेंगे तो हम बताएँगे की उनमे से कितने intellectuals कांग्रेस और वामपंथी दलों के payrolls पे थे. आप डरे हुए हैं की कही आपके पुराने tweets आपकी hypocrisy को जगजाहिर ना कर दे.

और आप कहते हैं की आप अपनी माँ से ऐसे बात करते हैं, बाप पर चिल्लाते हैं, भाई बहन पर चीखते हैं. ये बहस की एक बहुत ही घिसी-पीटी शैली है और मैं आप जैसे शीर्ष पत्रकार से इससे बहुत बेहतर की आशा रखता हूँ. क्या आप अपने परिवारजनो से पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर बात करते हैं, शायद नहीं. तो क्या हम अपने परिवार वालो पर चीखते हैं, नहीं…बिलकुल नहीं. आपका विडियो काला था, वो आपके भय का परिचायक है. आप डरे हुए हैं रवीश जी, और ये डर स्वाभाविक है.

मैं दक्षिणपंथी यानी राईट टू सेण्टर राजनैतिक विचारधारा का अनुयायी हूँ लेकिन उग्रपंथ यानि रेडिकलराईट का विरोधी हूँ. आपकी तरह, मैं कोई छोटा मोटा आदमी नहीं हूँ. फेसबुक पर एक बड़ा सा पृष्ठ चलाता हूँ. एक बड़ी सी ओपिनियन ब्लॉग का संपादक भी हूँ. जब आप वास्तविकता देखेंगे तो मेरे बडबोलेपन पर हसेंगे. लेकिन मैं ना तो आपकी तरह हम्बल हूँ ना मेरी राजनैतिक विचारधारा छुपाने की कोई मजबूरी है. आप विडियो बनाते रहिये, हम जवाब देते रहेंगे.

जय हिन्द, वन्दे मातरम

 

Exit mobile version