दवाई बिलकुल मुफ्त

कल रात का खाना मंगल को भारी पड़ रहा था. कुल मिला के इक्कीस पूरियां, चार प्लेट तरकारी, लगभग इतनी ही दाल, आधा सेर चावल, दर्जन भर दहीबड़े और अंत में पाव भर राबड़ी रह रह कर उसके पेट में कोंचे मार रहा था. पेट गैस गोदाम बन चूका था. वैद्य के यहाँ जाने के अलावा अब कोई चारा नहीं बचा था.

वहीँ वैद्य रामशरण अपने ओसारे में बैठ मार्च के धुप के मज़े ले रहे थे. उनकी तोंद का घेरा सामने की मेज पर दस्तक दे रहा था. सामने वैद्यागिरी का झोला पड़ा था, पूजा पाठ की थैली पड़ी थी. कुल मिला के माहौल ऐसा था की वैद्यागिरी भी की जा सकती थी और पूजा भी परन्तु मरीजो और दर्शकों के अभाव में वो धुप सेंकना ही सही समझ रहे थे. सामने कम्पाउन्डर कम एजेंट कम चपरासी कम चारण सुरेश कुमार बैठा था.

सुरेश कुमार: बैद जी आज कल दूकान ठंडी पड़ी है

वैद्य रामशरण: सही कहा सुरेश, लगता है गाँव में आज कल कोई बीमार नहीं पड़ता

सुरेश कुमार: क्या बात कर दी बैद महाराज, बीमार तो खूब पड़ते हैं…कभी अपच, कभी अनिद्रा, कभी मन्दाग्नि तो कभी शुक्राणु की कमी. लेकिन लोग आजकल अपनी दूकान पर नहीं आते

वैद्य रामशरण: अच्छा ऐसा क्यूँ?

सुरेश कुमार: ऐसा इसलिए महाराज क्यूंकि बैद तिरलोचन और हकीम हाजी मस्तान ने रिजर्वेसन लगा दिया है

वैद्य रामशरण: क्या कहा रिजर्वेसन? ठीक से समझाओ भाई

सुरेश कुमार: ससुरा हकीम मुसलमानों का मुफ्त इलाज़ करता है और तिरलोचन दलितों को मुफ्त दवाई देता है

वैद्य रामशरण: अच्छा ऐसा है क्या? क्या सिर्फ गरीब मुसलमानों और दलितों के लिए ये सुविधा है या सबके लिए?

सुरेश कुमार: सबके लिए महाराज, हम नहीं चेते तो लुटिया डूबी ही समझो
वैद्य रामशरण: ठीक कहा तुमने, कुछ करना पड़ेगा

इतने में दरवाज़े पे दस्तक हुई. सुरेश कुमार ने दरवाज़ा खोला. मंगल की गरीब सूरत कल रात खाए गए पुष्टिवर्धक पदार्थ के कारण अमीरों के चेहरों की भाँती सूज गयी थी.

वैद्य रामशरण: कौन है सुरेश कुमार?

सुरेश कुमार: रोगी है, अपच का केस लगता है

वैद्य रामशरण: इधर ले आओ.

मंगल कराहता हुआ जमीन पे बैठ गया.

वैद्य रामशरण: कल रात क्या खाए थे भाई?

सुरेश कुमार: महाराज ये इम्पोर्टेन्ट नहीं है, पहले जात पूछिए

वैद्य रामशरण: सत्यवचन…कौन जात हो भाई? अगड़े हो की पिछड़े हो?

मंगल:आहSS…हम तो दलित हैं सरकार, कल रात इक्कीस पूरियां, चार प्लेट तरकारी, चार प्लेट दाल, आधा सेर चावल, दर्जन भर दहीबड़े और अंत में पाव भर राबड़ी खाए थे. सुबह दो बार कै हुआ, अभी उदारपीड़ा से हाल बेहाल है
वैद्य रामशरण: तुम्हारी बीमारी तो हम पल भर में ठीक कर देंगे, पहले अपना पैकेज सुनो. कंसल्टेशन पे तुम्हे पचास फीसदी रियायत है…और तुम्हारे लिए पहले तीन खेप की दवाई बिलकुल मुफ्त. ये बात का ढिंढोरा पीट आना. और हाँ ये भी बता देना की हम अल्लाह में भी यकीं रखते हैं इसलिए हमारे मुसलमान भाइयों ले लिए भी सेम टू सेम पैकेज उपलब्ध है.

ये घोषणा करके वैद्यजी चिकित्सा में लग गए. कुछ अर्क और चूरन प्रेसक्राईब किये गए. मरीज ख़ुशी ख़ुशी घर गया. और अगले ही घंटे से वैद्य जी के घर मरीजों का तांता लग गया. स्ट्रेटेजी सक्सेसफुल रही.

तिरलोचन और हकीम की दूकान ठंडी पड़ने लगी. प्रेशर में आके उन्हें भी नए पैकेजेज़ लगाने पड़े. कभी चूरन मुफ्त तो कभी च्यवनप्राश. कभी दलितों की मुफ्त शल्य चिकित्सा तो कभी मुस्लिमो को चिकित्सा के साथ मुफ्त खाना. गाँव में पोस्टरबाजी भी चालू हो गयी. सरेआम फब्तियां कसी जाने लगी, एक दुसरे को नकली चिकित्सक बताने की होड़ लग गयी. समर्थको की लाठियां निकल आई, सैंकड़ो माथे फूटे जिनमे से कई मुस्लिम और दलित माथे थे, जिनका इलाज़ उन्ही पैकेजेज़ के अंतर्गत किया गया.

पर ये बात तो गाँव वाले भी जानते थे तीनो चिकित्सक चोर हैं. उनकी चिकित्सा हिट एंड ट्रायल मात्र थी. पैकेजेज़ के चक्कर में गाँव की हेल्थ का बैंड बज गया. तभी एक शहरी नौजवान डॉक्टर गाँव आया. उसके पास देने को पैकेजेज़ तो नहीं थे पर खोपड़ी में अकल और हाथों में हुनर था. देखते ही देखते रोगी इस नए डॉक्टर की और मुड़ने लगे.

जब मैं आखिरी बार गाँव गया था तब वहां पोस्टर पे हमले नहीं हो रहे थे बल्कि प्रेम की अविरल गंगा बह रही थी. सुनने में आया की रामशरण, तिरलोचन और हाजी मस्तान ने एक साथ दूकान खोल ली है जहाँ कई आकर्षक पैकेजेज़ उपलब्ध हैं और उनके दलाल डॉक्टर के खिलाफ हवा बनने में लगे हैं. डॉक्टर बेचारा चुपचाप अकेला अपने काम में लगा है.

और हाँ इस कहानी का मुलायम-नितीश-लालू गठबंधन से कोई लेना देना नहीं है.

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