बकवास बंद!

आज मैं बोलूँगा, अपनी भड़ास निकालूँगा| लेकिन किसके लिए? सरकार के लिए? नहीं, नेताओं के खिलाफ? नहीं!! उन तमान लोगों के खिलाफ जो दूसरों की कमजोरियों का फायदा उठा रहे हैं? नहीं!!

आज मैं बोलूँगा सिर्फ दो लोगों के खिलाफ; वो दो लोग जो इन सभी गड़बड़ियों के लिए सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार हैं!
 
यार काम में बिजी हैं, सारा टाइम निकल जाता है, क्या करें? यार जिम्मेदारियां हैं, फॅमिली टेंशन हैं, क्या करें??

 
मैं बोलूँगा सिर्फ दो लोगों के खिलाफ, बाकी लोगों से मुझे कोई मतलब नहीं, गिला है पर शिकायत नहीं, क्यूँकी मुझे पता है दर्द तो है पर उनके पास मेरी दवा नहीं; मैं बोलूँगा सिर्फ दो लोगों के खिलाफ|
 
कहते हैं बदलना है तो खुद को बदलो, साला पता नहीं गाँधी ने किसका क्या भला किया या किसका बुरा, वो महात्मा तो बन गया और करोड़ों लोग महात्मा बनाने की कोशिश में लग गए| सही कहा, जो परिवर्तन तुम दुनिया में देखना चाहते हो, तुम वो परिवर्तन बनो| शास्त्री, नेहरु, पटेल, भगत, अटल, अन्ना, केजरीवाल….मुझे नहीं जानना वो क्या कर रहे है? मुलायम, लालू, मायावती, सोनिया, करूणानिधि, राजा, कलमाड़ी क्या कर रहे हैं मुझे नहीं मतलब! मुझे महात्मा से भी नहीं कोई मतलब! मैं सिर्फ दो लोगों के खिलाफ बोलूँगा – या पक्ष में …जो भी हो, मतलब एक है!
 
परिवार चलाने की मजबूरी ने हाथ बांध दिए मेरे……झूट बोलते हो! छोड़ दो परिवार! किसने रोका है? और क्या परिवार चलाते हुए लोग अपना काम नहीं करते?
पढ़ाई का प्रेशर है यार, टाइम कहाँ है? हाँ…सच कहा……KFC में खाने का बहुत टाइम है….
साली दुनिया ही ऐसी है तो मैं क्या करूँ? हाँ सही कहा, ….अब समझा दुनिया तुम जैसे लोगों की ही बनी है……सब खड़े हैं मैदान में इशारा करते हुए दूसरे की ओर…..
 
पर मैं तुम्हे क्यूँ बोलूं? मुझे तुमसे क्या मतलब? मैं बोलूँगा, सिर्फ दो लोगों के लिए…..तुम उनमे नहीं….
 
मुझे रोकने वाले वही रहे जिनमे खुद चलने का दम नहीं, उनकी एक बात मान लो तो एक और मुद्दा ले कर खड़े हो जाते हैं….ठीक वैसे ही जैसे नौकरी के पीछे पड़े रिश्तेदार नौकरी मिलते ही शादी के पीछे पड़ जाते हैं, फिर शादी होते ही बच्चों के, फिर उनकी नौकरी, उनकी शादी, उनके बच्चे………आदमी कहाँ है? कौन है? क्यूँ है?
 
खैर मुझे उनसे क्या? उन्होंने मेरा क्या बनाया, या क्या बिगाड़ा? मुझे सिर्फ दो लोगों से शिकायत है…..उन्ही के खिलाफ मेरी लड़ाई है या उन्ही से यारी, जो समझ लो, बात बराबर है……
 
वो दो लोग हैं – एक वो जो ये लिख रहा है और दूसरा जो पढ़ रहा है……हाँ…….ये दो अगर प्रण कर लें, तो बाकि सबकी क्या मजाल? समाज, शासन, कुशासन, राजनीती, करियर….सब बकवास है…..अगर ईश्वर ने शरीर दिया है तो शरीर जिंदा भी रखेगा, दिमाग दिया है तो रास्ते भी देगा………बस सोचना ये है की आत्मा का क्या करना है……….ये निश्चय मैं इन दो लोगों पर छोड़ता हूँ… 
आज मैं बोलूँगा, अपनी भड़ास निकालूँगा| लेकिन किसके लिए? सरकार के लिए? नहीं, नेताओं के खिलाफ? नहीं!! उन तमान लोगों के खिलाफ जो दूसरों की कमजोरियों का फायदा उठा रहे हैं? नहीं!!

आज मैं बोलूँगा सिर्फ दो लोगों के खिलाफ; वो दो लोग जो इन सभी गड़बड़ियों के लिए सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार हैं!
 
यार काम में बिजी हैं, सारा टाइम निकल जाता है, क्या करें? यार जिम्मेदारियां हैं, फॅमिली टेंशन हैं, क्या करें??

 
मैं बोलूँगा सिर्फ दो लोगों के खिलाफ, बाकी लोगों से मुझे कोई मतलब नहीं, गिला है पर शिकायत नहीं, क्यूँकी मुझे पता है दर्द तो है पर उनके पास मेरी दवा नहीं; मैं बोलूँगा सिर्फ दो लोगों के खिलाफ|
 
कहते हैं बदलना है तो खुद को बदलो, साला पता नहीं गाँधी ने किसका क्या भला किया या किसका बुरा, वो महात्मा तो बन गया और करोड़ों लोग महात्मा बनाने की कोशिश में लग गए| सही कहा, जो परिवर्तन तुम दुनिया में देखना चाहते हो, तुम वो परिवर्तन बनो| शास्त्री, नेहरु, पटेल, भगत, अटल, अन्ना, केजरीवाल….मुझे नहीं जानना वो क्या कर रहे है? मुलायम, लालू, मायावती, सोनिया, करूणानिधि, राजा, कलमाड़ी क्या कर रहे हैं मुझे नहीं मतलब! मुझे महात्मा से भी नहीं कोई मतलब! मैं सिर्फ दो लोगों के खिलाफ बोलूँगा – या पक्ष में …जो भी हो, मतलब एक है!
 
परिवार चलाने की मजबूरी ने हाथ बांध दिए मेरे……झूट बोलते हो! छोड़ दो परिवार! किसने रोका है? और क्या परिवार चलाते हुए लोग अपना काम नहीं करते?
पढ़ाई का प्रेशर है यार, टाइम कहाँ है? हाँ…सच कहा……KFC में खाने का बहुत टाइम है….
साली दुनिया ही ऐसी है तो मैं क्या करूँ? हाँ सही कहा, ….अब समझा दुनिया तुम जैसे लोगों की ही बनी है……सब खड़े हैं मैदान में इशारा करते हुए दूसरे की ओर…..
 
पर मैं तुम्हे क्यूँ बोलूं? मुझे तुमसे क्या मतलब? मैं बोलूँगा, सिर्फ दो लोगों के लिए…..तुम उनमे नहीं….
 
मुझे रोकने वाले वही रहे जिनमे खुद चलने का दम नहीं, उनकी एक बात मान लो तो एक और मुद्दा ले कर खड़े हो जाते हैं….ठीक वैसे ही जैसे नौकरी के पीछे पड़े रिश्तेदार नौकरी मिलते ही शादी के पीछे पड़ जाते हैं, फिर शादी होते ही बच्चों के, फिर उनकी नौकरी, उनकी शादी, उनके बच्चे………आदमी कहाँ है? कौन है? क्यूँ है?
 
खैर मुझे उनसे क्या? उन्होंने मेरा क्या बनाया, या क्या बिगाड़ा? मुझे सिर्फ दो लोगों से शिकायत है…..उन्ही के खिलाफ मेरी लड़ाई है या उन्ही से यारी, जो समझ लो, बात बराबर है……
 
वो दो लोग हैं – एक वो जो ये लिख रहा है और दूसरा जो पढ़ रहा है……हाँ…….ये दो अगर प्रण कर लें, तो बाकि सबकी क्या मजाल? समाज, शासन, कुशासन, राजनीती, करियर….सब बकवास है…..अगर ईश्वर ने शरीर दिया है तो शरीर जिंदा भी रखेगा, दिमाग दिया है तो रास्ते भी देगा………बस सोचना ये है की आत्मा का क्या करना है……….ये निश्चय मैं इन दो लोगों पर छोड़ता हूँ… 
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