मैं रावण
1
राम राम सब रटते रहते
यहाँ राम कौन बन पाया है
देखो अपने भीतर झांक के
रावण की ही छाया है
विश्रवा पुत्र मैं पौलस्त्य रावण
करता नवरचना का आह्वाहन
एकल सूक्ति में बंधे जगत ये
हो रक्ष जाति पर प्रत्यर्पण
ब्रह्मण पुत्र मैं ब्रह्मण हुआ
वंश भार मुझ पर झुका
छीन राज तुम हुए प्रबल
अब देखो रावण का बल
वेदग्यी और युद्ध कुशल
शौर्य प्रताप और स्थिर संकल्प
विचरण करूँ स्वछंद जगत में
प्रतिद्वंदी हों तो हो विह्वल
दस भावों का करूँ धारण
जग जाने मुझको दसानन
लक्ष्य सामने बड़ा विकल है
पर मन से बंधा ह्रदय अटल है
रूद्र पुजारी, रूद्र से प्रसादित
देवों में प्रतिपल प्रतिवादित
विभाजन नीति बड़ी कुटिल है
देव अहम् मैं करूँ पराजित
2
जो उजाला है
तो अँधेरा भी होगा
जो अच्छाई है
तो बुराई भी होगी
और जो राम है
तो रावण भी होगा
जो करना हो बुराई का अंत
तो अच्छाई का भी अंत करना होगा
जो रावण को मरना है
तो राम को भी मरना होगा
होता हर मनुष्य का
धरती पर दो बार जनम
एक प्रकृति की नियति
दूसरा उसका करम
मैं तो जन्मा मनुष्य ही था
स्नेहाकुल थे मेरे नयन
पर देवों ने दिया अभाव मुझे
कर मेरी जाति पर दमन
छाई चहुँओर जातिभेद की कालिमा
तभी तो फिर मैं रावण जन्मा
भाव माँगा अभाव मिला
स्नेह माँगा तिरस्कार मिला
जब देवों पर छाया सत्ता का मोह
हाय तभी तो जगत को रावण मिला